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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

योग किया था, इसीलिए किया था कि उसका उसकी उपयोगितामें विश्वास था। बलिदान तो असहयोगकी एक अनिवार्य शर्त है।

मैं जानता हूँ कि बहुत-से छात्रों, वकीलों और अन्य लोगोंको कष्ट उठाने पड़े हैं। उस कष्ट-सहनसे उनको और राष्ट्रको बहुत लाभ पहुँचा है। प्रत्येक असहयोगी विद्यार्थीके सामने, यदि करना चाहें तो, राष्ट्र-सेवा करनेका बहुत बड़ा क्षेत्र पड़ा हुआ है। चरखेका सही-सही इस्तेमाल करनेसे निश्चय ही उसे वह जो-कुछ चाहता है, सब मिल जायेगा, लेकिन चरखेमें जिसका विश्वास नहीं है, वह कोई भी ऐसा अन्य राष्ट्रीय कार्य अपना सकता है जो उसे अच्छा लगे।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत प्रफुल्लचन्द्र मित्र


नेशनल मेडिकल इन्स्टीट्यूट


ढाका

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४८३) की फोटो-नकलसे।

३९६. पत्र: एस॰ मेहताको

साबरमती आश्रम
२१ अप्रैल, १९२६

प्रिय महोदय,

आपने मुझसे यह जानना चाहा है कि १८९६ में जब मैं भारतसे नेटाल लौटा तब 'कूरलैंड' नामक जहाजसे मेरे साथ आपके भाई शेख अमीर अली खाँ भी यात्रा कर रहे थे या नहीं। उत्तरमें मैं सूचित करता हूँ कि आपके उक्त भाईने उक्त जहाजसे उस वर्ष मेरे साथ यात्रा की थी।

हृदयसे आपका,

श्री एस॰ मेहता


२२२, ग्रे स्ट्रीट


डर्बन

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४८४) की माइक्रोफिल्मसे।