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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्योंकि हिन्दुस्तानमें तो यह होता ही नहीं है इसलिए ताजा मुश्किलसे ही मिलता है। यह भी देखनेमें आता है कि घी और तेलके हजम होनेमें अलग-अलग समय लगता है और पाचन-क्रिया भी दोनोंकी अलग-अलग होती है। इसलिए ऑलिव आयल छोड़ देना कदाचित् अच्छा हो। वैद्यकी दवाके बारेमें तुम जो कहते हो, सो ठीक है। इसकी दवाका असर जादू-मन्तरके समान होता है। डाक्टर तलवलकरको हमारी ओरसे पूरा सम्मान नहीं मिला है, ऐसा कहनेमें तुमने सिडनी स्मिथकी भाषाका प्रयोग किया जाना पड़ता है। "हम" अर्थात् लिखनेवाला और जिसे लिखा जाये वे दोनों, तुम यही कहना चाहते हो न? या तुम्हारा मतलब 'मेरी ओरसे' है? यदि तुम्हारा यही मतलब है कि डॉ॰ तलवलकरको मेरी ओरसे सम्मान नहीं मिला है तो तुमने सिडनी स्मिथको बीचमें बेकार ही घसीटा; मैं तुम्हारे आरोपको स्वीकार करता हूँ। उसका कारण यह है कि डॉ० तलवलकरके प्रति मेरे हृदयमें बहुत मान है परन्तु उनके ज्ञानके प्रति नहीं है। इसीलिए मैंने जब-तब कानूगाको बुलाया है और दोनोंमें से किसी एकको चुनना हो तो मैं अपना जीवन कानूगाको सौंपनेमें नहीं हिचकिचाऊँगा। डॉ॰ तलवलकर क्षयरोगके पीछे दीवाने बन गये हैं, जिस तरह मैं चरखेके पीछे बन गया हूँ। वह सबमें क्षयरोग ही देखते हैं और कौन जाने क्या है, लेकिन, उनके इंजेक्शनमें मुझे तनिक भी विश्वास नहीं होता। उन्होंने वैद्यक-शास्त्रका बहुत अध्ययन किया है लेकिन उसे पचाया नहीं है, ऐसा मुझे हमेशा लगा करता है। ऐसी स्थितिमें क्या करना चाहिए? १० दिन पहले वे यहाँ आये थे तब मैंने उन्हें अपने अविश्वासके बारेमें बताया था। उन्होंने मेरा मत-परिवर्तन कर सकनेकी बात मुझसे कही है, यदि मैं उन्हें पूरा समय दूँ तो। लेकिन समय कहाँसे मिले? अतएव कदाचित् मुझे अपनी अश्रद्धाको मिटा देना चाहिए। सच बात तो यह है कि डाक्टरमात्रमें अर्थात् वैद्यकके धन्धेमें ही मेरा विश्वास बहुत कम है और मेरा यह अविश्वास बढ़ता ही जाता है। आत्माको ध्यानमें रखे बिना वे केवल शरीरके ही नियमोंकी खोजमें लगे रहते हैं इसीलिए सच्चे उपाय उनके हाथ नहीं आते।

मेरा मसूरी जाना स्थगित हो गया है। कल हमने पर्चियाँ निकाली थीं। जमनालालजीको मुझे ले जानेके बारेमें कम विश्वास था इसलिए पर्ची निकालनी पड़ी। वहाँ जानेकी आवश्यकता है, यह बात तो मैं पहलेसे ही नहीं मानता था। इसलिए मैं वहाँ जानेकी बातका उत्तरदायित्व कैसे लेता? जमनालालजी उत्तरदायित्व लेनेको तैयार न थे। जहाँ सिद्धान्त-भेद न हो और एक या दूसरा निर्णय न किया जा सके तो पर्ची डालकर ईश्वरके अभिप्रायको जान लेनेकी बात मुझे हमेशा पसन्द आई है।

शंकर ज्यादासे-ज्यादा पहली जूनको भावनगर चला जायेगा, ऐसा नानाभाईने तय किया है। बालके बारेमें स्वामी विचार कर रहे हैं। बालको लिखे तुम्हारे पत्रकी बात चन्द्रशंकरने अभी-अभी मुझसे कही है। इसलिए अब इस विषयपर स्वामीके साथ बातचीत करनेके बाद ही विचार किया जायेगा।

बापूके आशीर्वाद