३९२. पत्र: मीठूबहन पेटिटको
साबरमती आश्रम
मंगलवार, चैत्र सुदी ८ [२० अप्रैल, १९२६][१]
तुम्हारा पत्र मुझे मिला। मैंने तो तुम्हें यदि आवश्यक हुआ तो नुकसान उठाकर खादी भेजनेकी बात लिखी थी। इसलिए यदि बम्बईकी खादी तुम्हें महँगी लगती तो उसमें से कुछ पैसे मैं चुका देता। इस पत्रके साथ एक दूसरा बिल भेज रहा हूँ—जो खादी आश्रमसे भेजी गई थी उसका। आश्रमसे जो खादी आई है उस खादीके बारेमें कुछ कहने लायक बात है क्या? इतना तो तुम समझती ही हो कि आश्रमसे जो भी वस्तु जाये वह यदि ठीक न हो अथवा पुसाती न हो तो अवश्य वापस भेजी जा सकती है और यदि रख ली जाये तो भी उसमें यदि कोई दोष दिखाई दे तो वह मुझे बताना चाहिए।
मेरा मसूरी जाना रद हो गया है, यह खबर तुमने समाचारपत्रोंमें तो देखी ही होगी। राष्ट्रीय स्त्री-सभाको अब तो प्रथम श्रेणीका प्रमाणपत्र मिलना चाहिए। दूसरी श्रेणीके प्रमाणपत्रसे तुम्हें अथवा मुझे सन्तोष नहीं होगा। फिलहाल शहद मत भेजना। कदाचित् मुझे ही दो-तीन दिनोंके लिए महाबलेश्वर आना पड़े। निश्चित होनेपर तुम्हें बताऊँगा, इस बारेमें कहीं बात न करना। यह बात ठीक है कि स्ट्रॉबेरी यहाँतक नहीं पहुँच सकतीं। अपनी तबीयतको खूब सुधारना।
गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८९०) की फोटो-नकलसे।
३९३. पत्र: काका कालेलकरको
साबरमती आश्रम
मंगलवार, चैत्र सुदी ८ [२० अप्रैल, १९२६]
तुम्हारा आधा पत्र मिल गया है, यानी जिसमें तबीयतका वर्णन है। बाकी, मैं मानता हूँ बादमें आयेगा। बहुत दिन हो गये तुम्हें पत्र ही नहीं लिखा इसलिए आज थोड़ा-सा लिखाये दे रहा हूँ।
यदि डाक्टरने ऑलिव आयल लेनेके लिए विशेष रूपसे कहा है तो मैं विवादमें नहीं पड़ना चाहता; अन्यथा इसे छोड़ देना ही श्रेयस्कर है। यहाँका ऑलिव आयल मुझे तो तनिक भी माफिक नहीं आया। यहाँका, अर्थात् इटली अथवा स्पेनसे आया हुआ;
- ↑ वर्षका अनुमान मसूरी-यात्राके रद होनेके उल्लेखसे लगाया गया है।