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३८३. वक्तव्य: मसूरी यात्रा स्थगित करनेके सम्बन्धमें

अहमदाबाद
१८ अप्रैल, १९२६

जमनालालजी तथा कुछ दूसरे मित्र मुझे मसूरी भेजना चाहते थे। मेरी यात्राकी सूचना प्रकाशित भी हो चुकी है। लेकिन, अपनी पिछली बीमारीके बादसे मैंने अपनी पुरानी शक्ति प्राप्त करनेमें जो प्रगति की है, उसको देखते हुए और खुद मेरे इरादोंका खयाल करके उन्होंने तय किया है कि जबतक मेरे दुबारा बीमार हो जानेका खतरा न हो तबतक वे वहाँ जानेके लिए मुझपर कोई दबाव नहीं डालेंगे।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १९-४-१९२६

३८४. पत्र: गांधी आश्रम, बनारसको

साबरमती आश्रम
१९ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्रगण,

मुझे आशा थी कि कृपलानीजीको[१] विद्यापीठके कामसे मुक्त कराकर उन्हें फिरसे पूरी तरह आपकी संस्थाको सौंप दूँगा। लेकिन, इस विषयमें हम सभीने अपने-आपको लाचार पाया है। इस समय तो उन्हें विद्यापीठके कामसे मुक्त करना सम्भव नहीं है। हो सकता है, अगले दो वर्षोंतक यह सम्भव न हो सके। आज जबकि हम अपनी खोई हुई स्वतन्त्रता पुनः प्राप्त करनेके लिए इतने आतुर हैं और हमारी यह आतुरता स्वाभाविक ही है—हमारे राष्ट्रीय जीवनमें दो वर्षोंकी अवधि काफी लम्बी अवधि है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि अगर कृपलानीजीको उससे पहले मुक्त करना सम्भव हो सका तो मैं खुशी-खुशी उन्हें मुक्त कर दूँगा; क्योंकि मुझे मालूम है कि आपका काम कितना महत्त्वपूर्ण है और आपके श्रमका आजतक जो सुफल निकला है, अगर भविष्यमें उससे अधिक सुफल निकलना है तो यह बात कितनी जरूरी है कि वे बराबर आपके बीच रहें। इसलिए मुझे आशा है कि कृपलानीजी वहाँका कार्य अच्छी तरह संगठित कर सकें, इस दृष्टिसे आप उनका मार्ग सुगम बनायेंगे।

हृदयसे आपका,

गांधी आश्रम, बनारस

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४७६) की फोटो-नकलसे।

  1. आचार्य जीवतराम बी॰ कृपलानी।