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विविध प्रश्न [—५]

  भी जिन-जिन लोगोंको यह उलझन महसूस होती हो, उन सबको मैं अपने साथ इस नावमें बैठनेका निमन्त्रण देता हूँ। आप सब मेरे इस कथनका विश्वास कीजिए कि यह नाव ऐसी है जो हमें अवश्य पार ले जायेगी। अलबत्ता, उसे चलानेमें हमारी सारी शक्ति, व्यवस्था-कौशल और अनुशासनकी आवश्यकता होगी।

जलियाँवाला बाग[१]

जलियाँवाला बाग स्मारकके लिए जो पैसा इकट्ठा किया गया था उससे यह बाग खरीदा गया। जमीन साफ कर ली गई है और वहाँ बगीचा बनाया गया है। मन्दिर अभी नहीं बनाया है, क्योंकि हिन्दुस्तानके ग्रह इस समय विपरीत हैं। आज तो हम स्वतन्त्रताकी नींव खोद रहे हैं। ऐसी हालतमें स्वतन्त्रताके भव्य मन्दिरका निर्माण कैसे किया जा सकता है! मेरा विश्वास है कि ट्रस्टियोंको इसी विचारके कारण किसी भी तरहके मन्दिरका निर्माण करनेमें संकोच हो रहा है। जमीनकी कीमत चुकानेके बाद जो पैसा बाकी रह गया है, उसका हिसाब अच्छी तरह रखा जाता है और मन्त्रीकी मार्फत यह हिसाब ट्रस्टियोंको नियमित रूपसे भेजा जाता है तथा प्रकाशित भी किया जाता है।

हिंसा[२]

मैं भी तो ऐसी हिंसा होते हुए देखता ही हूँ। छिपकलीको तिलचट्टोंका और तिलचट्टोंको दूसरे कीड़ोंका शिकार करते हुए मैंने अक्सर देखा, किन्तु प्राणी-जगत् में व्यवहृत 'जीवो जीवस्य जीवनम्' के नियमको रोकना मुझे कभी कर्त्तव्य नहीं जान पड़ा। मैं ईश्वरकी सृष्टिकी इस अगम्य पहेलीको सुलझानेका दावा नहीं कर सकता, किन्तु ऐसी हिंसा देख-देखकर मुझे तो यह प्रतीत होता है कि पशुओं और अन्य निम्नतर प्राणियोंका नियम मनुष्यपर लागू नहीं हो सकता। मनुष्यको तो लगातार प्रयत्न करके अपने भीतर रहनेवाले पशुको जीतनेका और उसे मारकर आत्माको जीवित रखनेका प्रयत्न करना है। इसके आसपास जो हिंसाका दावानल प्रज्वलित हो रहा है, उसमें से उसे अहिंसाका महामन्त्र सीखना है। इसलिए यदि मनुष्य अपनी प्रतिष्ठा समझ ले और उसे जीवनकार्यका ज्ञान हो जाये तो उसका कर्त्तव्य यह है कि वह इस हिंसा में स्वयं कोई भाग न ले और अपनेसे निम्नतर तथा अपने अधीनस्थ प्राणियोंको किसी प्रकार का कष्ट न दे। यह आदर्श वह केवल अपने लिए ही रख सकता है और यदि ज्यादा नहीं तो इतना तो वह अवश्य कर सकता है कि वह अपनेसे कमजोर मनुष्य बन्धुओंको किसी तरहका कष्ट न पहुँचाये। यह भी आदर्श ही है, क्योंकि इसके सम्पूर्ण पालनके लिए उसे दिन-रात सतत प्रयत्न करना होगा। तभी वह उसे किसी दिन

  1. एक पत्र-लेखकने गांधीजीसे पूछा था कि जलियांवाला बाग स्मारकके लिए इकट्ठा किये गये कोषका क्या हुआ।
  2. एक पत्र-लेखकने पूछा था कि वह अकसर जीव-जन्तुओंको अपनेसे कमजोर और छोटे जीव-जन्तुओंको पकड़कर उनका भक्षण करते देखता है। ऐसी हालतमें उसे क्या करना चाहिए—चुपचाप देखते रहना चाहिए या उसे मारनेवाले जन्तुको मारकर हिंसाको रोकना चाहिए?