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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  ५. हृदयको पवित्र रखने और चित्तकी एकाग्रताके लिए उपर्युक्त पुस्तकोंका पठन और मनन करना तथा जब किसी शुभ कार्यमें न लगे हों उस समय रामनामका जाप सहायक सिद्ध होता है।

६. हम तो प्रयत्न करते रहें और उस बातमें श्रद्धा रखें कि प्रयत्नका फल मिले बिना नहीं रहेगा।

७. रागद्वेषादिका सर्वथा क्षय हो जाना ही आत्मदर्शनका एकमात्र उपाय है।

८. शुभ प्रवृत्तियोंमें लग जानेसे परम शान्ति अवश्य मिल सकती है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ११-४-१९२६

३८२. विविध प्रश्न [—५]

तब हम क्या करें?[१]

भाई मणिलाल कोठारीने मुझे आपका सन्देश दिया। मैं आपको कोई प्रेरणाप्रद निश्चयात्मक और बिजलीके वेगका प्रभाव रखनेवाला हल सुझा सकता तो कितना अच्छा होता। किन्तु आज जो परिस्थिति है उसमें मेरे पास ऐसा कोई हल नहीं है। सार्वजनिक सभाओंमें प्रस्ताव पास करके और विधान सभाओंमें भी इस चीजका काफी विरोध किया गया है। अब तो हमें ऐसा-कुछ करना चाहिए जिससे हमें अपनी शक्तिका अनुभव हो। इसलिए मुझे तो विदेशी कपड़ेके बहिष्कारके अलावा कुछ सूझता नहीं और खादीके बिना विदेशी कपड़ेका बहिष्कार असम्भव है।

इसलिए सरकार यदि लोगोंको बिना किसी अपराधके जेलमें डालती है तो इस, और ऐसे ही अन्य कष्टोंका तो मुझे चरखेके अतिरिक्त और कोई उपचार नहीं सूझता। किन्तु मैं लोगोंको कैसे समझाऊँ कि यह उपाय अमोघ है। मेरा तो इसमें अविचल विश्वास है और वह दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है। इसलिए हमने तो राष्ट्रीय सप्ताह की अवधिमें सात दिनतक रात-दिन चरखा चलाया और इस श्रद्धाके साथ चलाया कि किसी दिन चरखेमें से ही हमें वह शक्ति प्राप्त होगी जिससे हम अपना मनोरथ पूरा कर सकेंगे।

हाँ, चरखेके सिवाय एक रास्ता और है—हिंसा। किन्तु वह मेरे वशका नहीं है और उसमें मुझे श्रद्धा भी नहीं है, और मैं तो हरएक चीजको व्यवहारकी दृष्टिसे परखनेवाला आदमी हूँ; इसलिए मैं जानता हूँ कि सरकार जो हिंसा कर सकती है, उसकी तुलनामें हमारी हिंसा नगण्य है। इसलिए मैं तो और सारे साधनोंको छोड़कर केवल उस चरखेकी नावके सहारे समुद्रमें कूद पड़ा हूँ। आपकी तरह और

  1. सुभाषचन्द्र बोस निर्दोष होते हुए भी मांडले जेलमें बन्दी थे। उनके भाई शरतचन्द्र बोसने पूछा था कि ऐसे कैदियोंको मुक्त करानेके सभी संवैधानिक उपाय व्यर्थ साबित हुए हैं, इसलिए अब क्या हम उनकी रिहाईके लिए कुछ नहीं कर सकते। इसपर गांधीजीने उन्हें यह सन्देश भेजा था।