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विविध प्रश्न [—३]

लेते हैं। यह तो आपने भी देखा होगा कि विषय-भोग करते रहनेपर भी स्वप्नदोष हो जाता है। इसलिए यदि आप ब्रह्मचर्यके मूल्यको स्वीकार करते हों और उसका पालन करनेकी आपकी इच्छा हो तो सतत प्रयत्न करते हुए भी यदि स्वप्नदोष हो तो उस ओरसे निश्चिन्त रहते हुए आपको ब्रह्मचर्यंका पालन करते रहना चाहिए। ब्रह्मचर्यको आचार मान लेनेके बहुत दिनों बाद ही आप मनपर अधिकार कर सकेंगे। मनपर अधिकार कब कर पायेंगे, यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सबके लिए समयकी एक ही मर्यादा नहीं होती। सबकी अपनी-अपनी शक्तिके अनुसार समय थोड़ा-बहुत घट-बढ़ सकता है। कोई-कोई तो आजीवन मनको काबूमें नहीं कर पाते, फिर भी आचरणमें लानेपर ब्रह्मचर्या अमोघ फल तो उन्हें मिलता ही है और भविष्यमें आसानीसे मनको रोक सकें, वे शरीरके ऐसे स्वामी बन जाते हैं।

मेरे विचारसे तो ब्रह्मचर्य-पालनके लिए न तो पुरुषको स्त्रीकी और न स्त्रीको पुरुषकी सम्मतिकी आवश्यकता है। इस मामलेमें दोनों एक-दूसरेकी सहायता करें, यही इष्ट है। ऐसी सहायता प्राप्त करनेके लिए प्रयत्न करना उचित है, किन्तु अनुमति मिले या न मिले, जिसकी इच्छा हो वह उसका पालन करे और उससे दोनों लाभ उठायें। संगसे दूर रहनेमें सम्मतिकी आवश्यकता न होनेपर भी संग करनेमें दोनोंकी सम्मति आवश्यक है। जो व्यक्ति अपनी पत्नीकी अनुमतिके बिना संग करता है, वह बलात्कारका पाप करता है और इस प्रकार वह ईश्वरीय और सांसारिक दोनों नियमोंको भंग करता है।

नाक-कान छिदवाना शास्त्रीय विधान!

मैं नहीं जानता कि नाक-कान छिदवाना वैदिक विधि है या नहीं। परन्तु यदि यह साबित भी हो जाये कि वह वैदिक विधि है तो भी जिस प्रकार आज नरमेघ नहीं किया जाता उसी प्रकार मेरा यह कहना है कि नाक-कान भी नहीं छिदाये जाने चाहिए। मैं ऐसे अनेक लोगोंको जानता हूँ जिनके कान छिदे हुए थे और जिन्हें अण्डकोषादि-वृद्धिका रोग हुआ है। और यह भी सब लोग जानते हैं कि जिन्होंने नाक-कान नहीं छिदवाये थे, ऐसे असंख्य पुरुष भी अण्डकोषादि-वृद्धिके रोगसे मुक्त हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि अण्डकोषादि-वृद्धिका रोग बिना कान छिदवाये ही ठीक हो गया। आपने जिस वैद्यके वाक्यका उल्लेख किया है उसके उस वाक्यमें कहा गया है कि नाक-कान छिदवानेका रिवाज चल पड़ा ज्ञात होता है। जब तीन व्यक्तियोंपर हमारा विश्वास हो और उन व्यक्तियोंमें मतभेद हो तो ऐसी स्थितिमें या तो हमें अपनी बुद्धिसे काम लेना चाहिए या ऐसा न कर सकें तो फिर जिसपर हमारी अधिक श्रद्धा हो हमें उसीका अनुसरण करना चाहिए।

अधम योनिमें जन्म

मेरी यह मान्यता अवश्य है कि मनुष्य-योनिमें जन्म लेनेके बाद पशु, वनस्पति आदि योनियोंमें आत्माका पतन हो सकता है।