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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

कुनैन क्यों ली?[१]

और ये हैं एक दूसरे मित्र जो कुनैनसे होनेवाले नुकसान गिना रहे हैं। यह नुकसान अधिक मात्रामें लम्बे समयतक कुनैन लेनेसे होता है, जबकि मैंने तो केवल पाँच-पाँच ग्रेनकी मात्रामें ही कुनैन ली थी और एक दिनमें दस ग्रेनसे अधिक कुनैन कभी नहीं ली। और सभी नींबू का रस, सोडा और पानीमें मिलाकर ली थी। पाँच दिनमें कुल मिलाकर ३० ग्रेनसे अधिक कुनैन नहीं खाई थी। चार दिन पाँच-पाँच ग्रेन कुनैन ही ली थी। इतनी कुनैन लेनेके बाद मुझे कोई बुरा परिणाम दिखाई नहीं दिया; और जो बहुत से मित्र तथा डाक्टर पन्द्रह-पन्द्रह ग्रेन कुनैन लेनेको कहते थे उन्हें भी सन्तुष्ट कर सका यह अतिरिक्त लाभ हुआ।

किन्तु इस प्रकार आँखें मूँदकर कुनैनपर हमला नहीं बोला जा सकता, क्योंकि कुछ समयके लिए मलेरियासे बचावके तौरपर कुनैनकी उपयोगिता स्पष्ट ही है। मलेरियाके भयंकर परिणामसे लोग तत्काल बच जायें तो भविष्यमें होनेवाले बुरे परिणामोंपर वे ध्यान नहीं देते। अतः उसपर सीधा हमला बोलना चाहिए और उससे यह सिद्ध होना चाहिए कि कुनैन कुछ भी लाभ नहीं पहुँचाती।

मैं जब जेलमें था तब जिस वजहसे मैंने ऑपरेशन कराया था,[२] उसी वजहसे मैंने कुनैन ली। जेलके लोगोंके दबावके कारण ही मैंने ऑपरेशन करवाया था तो फिर कुनैन लेनेके लिए मित्रोंके प्रेमका दबाव मेरे लिए कितना वजनदार रहा होगा, इसकी आप कल्पना करें। परन्तु यह सही है कि यदि मुझे यह विश्वास न होता कि ऑपरेशन करनेकी अनुमति देना भी तो मेरी कमजोरीकी निशानी है तो मैं ऑपरेशन ही न कराता। परन्तु यह कमजोरी, जिसे आप प्राकृतिक चिकित्सा कहते हैं, उसके प्रति पूर्ण विश्वासकी कमी है। यह चिकित्सा-पद्धति भी परिपूर्णतातक नहीं पहुँच सकी है। प्रकृतिके अतिरिक्त यदि और कुछ हमारे पास है तो वह है ईश्वरके प्रति श्रद्धा और इस श्रद्धाके बलपर जो-कुछ घटे उसे निर्लिप्त भावसे देखते और सहते रहने की भावना। इस स्थितितकमें अभी नहीं पहुँच सका हूँ। प्रयत्न करनेपर ही इस स्थितितक पहुँचा जा सकता है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आवश्यकता होनेपर वस्तुकी तरह पहना जा सके और यह विश्वास कि जगतका प्रतिपालक हमारी रक्षा करता है, तर्कसे उत्पन्न नहीं होता, बल्कि दर्शनसे ही आता है।

एक अन्य स्पष्टीकरण[३]

बर्माके मित्रसे कहता कि यद्यपि मैंने लोहे और संखियाके इंजेक्शन लिये थे फिर भी औषधि और डाक्टरोंके बारेमें अपने लेखमें व्यक्त किये गये विचारोंपर मैं दृढ़ रहना चाहता हूँ। अपने सामने आदर्श रखना एक बात है और उन आर्दशोंका

  1. प्राकृतिक चिकित्सामें विश्वास रखनेवाले एक अन्य मित्रने गांधीजीके कुनैन लेनेपर दुःख प्रकट करते हुए पत्र लिखा था।
  2. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ २०२-२०५।
  3. यह एक अन्य मित्रके पत्रके उत्तरमें लिखा था।