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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  उनमें नये प्राणोंका संचार होगा। लेकिन इस मन्दिरकी स्थापना सेवाका आरम्भ है, अन्त नहीं। सेवा करनेके प्रसंग तो बहुत हैं; किन्तु सेवक थोड़े हैं, यही मुश्किल है।

अन्त्यज सेवककी कठिनाई

एक अन्त्यज सेवक लिखता है:[१] इस युवकको यह परेशानी कोई मामूली परेशानी नहीं है। उसे उसके निश्चयके[२] लिए जितनी बधाई दी जाये उतनी कम है। यदि वह अपने निश्चयपर दृढ़ रहेगा और अपनी इन्द्रियोंपर अंकुश रखेगा तो भगवान उसकी सहायता अवश्य करेंगे। धर्मकी परीक्षा और धर्मकी रक्षा ऐसे संकटका सामना करनेसे ही हो सकती है।

ऐसा लगता है कि पत्र-लेखक वैश्य जातिका है। अन्त्यज सेवाका कार्य सौभाग्यसे उच्च वर्गके अनेक लोग कर रहे हैं। वर्ण-व्यवस्था धर्म है। किन्तु आजकल हम जो सैकड़ों जातियाँ देखते हैं वे धर्मका अंग नहीं हैं। वे तो रूढ़ियाँ हैं। कुछ हदतक ये रूढ़ियाँ हानिकर सिद्ध हुई हैं। रूढ़ियोंमें परिवर्तन और परिवर्धन किया जा सकता है और किया जाना चाहिए। यदि पत्र-लेखक वैश्य जातिका ही हो और अपनी उप-जातिसे बाहर जानेकी हिम्मत करे तो उसे विवाह के लिए अधिक बड़ा क्षेत्र मिल सकता है। उप-जातियोंमें अर्थात् वैश्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूद्र वर्णोंकी उप-जातियोंमें बेटी-व्यवहारकी परम्परा डालनेकी आवश्यकता बहुत अधिक है। तात्पर्य यह है कि वर्ण-व्यवस्थाकी मर्यादाके अनुसार जहाँ रोटी-व्यवहारकी अनुमति है वहाँ बेटी-व्यवहारकी अनुमति भी होनी चाहिए। यह अन्त्यज सेवक अपना इतिहास और अपनी योग्यता अपनी उप-जातिमें पंचोंको बताये। यदि उसे उनसे मदद न मिले तो निराश या क्रुद्ध हुए बिना गुजरातके वैश्य समाजके पंचोंके सम्मुख अपना मामला रखे और उनकी मदद माँगे। यदि उसमें योग्यता होगी तो समाजके उचित बन्धनों का उल्लंघन किये बिना ही उसे मदद मिल जायेगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।

यह सेवक और ऐसी विपत्तिमें पड़े अन्य सब सेवक इतना याद रखें कि यदि वे अन्त्यज सेवा अथवा दूसरे प्रकारकी सेवा केवल धार्मिक भावसे ही कर रहे हों तो उन्हें चाहे कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े, किन्तु वे असत्यका प्रयोग न करें और क्रोध न करें अर्थात् हिंसा न करें। यदि वे इस तरह सत्यका और मर्यादित अहिंसाका पालन करेंगे तो वे अपनी, अपने धर्मकी और अपने देशकी प्रतिष्ठामें वृद्धि करेंगे और कमसे-कम कठिनाई उठाकर संकटका निवारण कर सकेंगे। इसलिए उपर्युक्त सेवकको बिना किसी अतिशयोक्तिके अपना पूरा वृत्त प्रकाशित करना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १८-४-१९२६
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने इसमें कहा था कि अन्त्यजोंमें काम करनेके कारण उन्हें अपनी जीवन-संगिनी खोजनेमें बहुत कठिनाई हो रही है।
  2. लेखकने पत्रमें अपना यह निश्चय व्यक्त किया था कि वह जीवन-भर अन्त्यजशाला चलानेका कार्य करेगा।