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मेरी कामधेनु

होगा उसके कान उसकी ओर आकर्षित होंगे और जबतक वह चलती रहेगी तबतक वह अवश्य ही विकार रहित रहेगा। यदि इस धुनका असर अन्य धर्मावलम्बियोंपर न हो तो इससे क्या? 'अल्लाहो अकबर' का घोष सुनकर हिन्दुओंपर भले ही उसका असर न हो, परन्तु मुसलमान तो उसे सुनकर अवश्य ही सावधान हो जायेगा। भावुक अंग्रेज 'गॉड' का नाम लेते ही अपने क्रोधको दबाकर थोड़ी देरके लिए तो अवश्य ही विकारोंका त्याग कर देगा, क्योंकि जिसकी जैसी भावना होती है उसे फल भी वैसा ही मिलता है।

इसी न्यायसे चरखेमें कुछ नहीं हो तो भी मैंने उसमें कुछ मनचाही शक्तियोंका आरोपण किया है, इसलिए वह मेरे लिए अवश्य ही कामधेनु-रूप होगा। मैं सूतका प्रत्येक तार काते हुए हिन्दुस्तानके कंगालोंका चिन्तन करता हूँ। हिन्दुस्तानके गरीब लोगोंका ईश्वरपर से विश्वास उठ गया है; फिर मध्यमवर्ग अथवा धनिक वर्गपर तो वे विश्वास क्यों करने लगे? जिसका पेट भूखा है और जो उसकी भूख मिटाना चाहता है उसके लिए तो पेट ही परमेश्वर है। जो मनुष्य उसको रोटीका साधन देगा वही उसका अन्नदाता होगा और उसके द्वारा शायद वह ईश्वरके दर्शन भी करेगा। इन भूखे लोगों के हाथ-पैर स्वस्थ होनेपर भी इन्हें केवल अन्नदान देना, स्वयं दोषमें लिप्त होने और उन्हें भी दोषी बनानेके बराबर है। उन्हें तो कुछ मजदूरी मिलनी चाहिए। करोड़ोंको मजदूरी तो केवल चरखा ही दे सकता है और उस चरखेपर उनकी श्रद्धा भाषणोंके द्वारा नहीं, बल्कि स्वयं सूत कातकर ही जमा सकूँगा। इसीलिए मैं सूत कातनेकी क्रियाको तपश्चर्या अथवा यज्ञ कहता हूँ और चूँकि मैं यह मानता हूँ कि जहाँ गरीबोंका शुद्ध चिन्तन किया जाता है वहाँ ईश्वर है, इसलिए मैं सूतके प्रत्येक तारमें ईश्वरका दर्शन कर सकता हूँ।

आप किसलिए कातें?

यह मैंने अपनी भावनाकी बात कही और यदि इसे आप भी स्वीकार करें तो फिर और क्या चाहिए? यदि आप इसे स्वीकार न कर सकें तो भी आपके लिए सूत कातनेके दूसरे बहुत-से कारण हैं। उनमें से कुछ मैं यहाँ दे रहा हूँ।

(१) आप कातेंगे तभी तो दूसरोंसे कतवा सकेंगे।

(२) आपके सूत कातनेसे और अपने काते सूतको चरखा-संघको देनेसे अन्तमें खादी सस्ती हो सकेगी।

(३) यदि आप सूत कातनेकी कला सीख लेंगे तो भविष्यमें अथवा अभी, जब चाहें तब खादी-प्रचारके कार्यमें योगदान कर सकेंगे, क्योंकि अनुभवसे यह मालूम हुआ है कि जिन्हें इन क्रियाओंका कुछ भी ज्ञान नहीं है, वे उसमें कोई योगदान नहीं कर सकते।

(४) यदि आप सूत कातेंगे तो सूतकी किस्म सुधरेगी। कमाई करनेके इरादेसे सूत कातनेवाले लोगोंमें अधीरता होगी; इसलिए वे तो जिस अंकका सूत कातते होंगे उसी अंकका सूत ही कातते जायेंगे। सुतके अंकोंमें सुधार करनेका काम शोधकका है या उसका है जिसको उसका चाव है। यह भी अनुभवसिद्ध बात है। यदि सेवा-वृत्तिसे