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३७०. पत्र: नाजुकलाल नन्दलाल चौकसीको

साबरमती आश्रम
शनिवार, १७ अप्रैल, १९२६

भाई नाजुकलाल,

ऐसा समझना कि यह पत्र तुम दोनोंको लिखा गया है। उस समय मैं इतना व्यस्त था और अब भी हूँ कि यह सोचकर मुझे हैरानी होती हैं कि मैं दो पंक्तियाँ[१] लिखने का भी समय कैसे निकाल पाया। इसलिए "वास्तविक मामा न होनेसे तो मुँह बोला मामा ही अच्छा" इस कहावतको याद रख मैंने दो पंक्तियाँ लिखकर ही सन्तोष मान लिया। वैसे, मोतीके गुणका विचार करता हूँ तथा उसका डेढ़ पंक्तियोंका पत्र देखता हूँ तो मुझे अपनी दो पंक्तियाँ ही अधिक जान पड़ती हैं और अब तो तुमने मोतीको उसके वर्तमान नामसे भी बढ़कर नाम दे दिया है। सुकन्या[२] जब पत्र लिखती होगी तब उसके पत्रोंसे तो प्रौढ़ स्त्री-पुरुष भी ज्ञान प्राप्त करते होंगे। तुम दोनों इस बातपर विचार करना कि ऐसी आशा मुझे इस सुकन्यासे कब रखनी चाहिए और इसका उत्तर देना। तुम्हारी तबीयत अच्छी हो गई है, इसका यही अर्थ मानें न कि अब तुम बिलकुल अच्छे हो गये हो? अब इसे ऐसी ही बनाये रखना। लगता है, हम मसूरीके लिए २२ तारीखको निकलेंगे। लक्ष्मीदास काठियावाड़में भ्रमण कर रहे हैं। २० तारीखको यहाँ आयेंगे और बहुत करके मेरे साथ जायेंगे। लिखावटसे मेरा अन्दाज है कि मोतीका अंग्रेजी-अभ्यास ठीकसे चल रहा है किन्तु उसके गुजराती अक्षर अभी मोतीके दानोंसे दूर जान पड़ते हैं, यह मोतीको बता देना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १२१२६) की फोटो-नकलसे।

  1. देखिए "पत्र: मोतीबहन चौकसीको", ११-४-१९२६।
  2. महाराजा शर्यातिकी पुत्री जो च्यवन ऋषिको ब्याही थी।