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३६८. पत्र: सतीशचन्द्र मुखर्जीको

साबरमती आश्रम
१७ अप्रैल, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

आपका लम्बा पत्र और कृष्णदासकी चिट्ठी पाकर मैं कितना खुश हुआ, बता नहीं सकता। आपने जो पुस्तिका भेजी है, उसे पढ़कर अपने विचार आपको बताऊँगा।

आशा है, इस बारके दरभंगा-निवाससे आप पूर्ण स्वस्थ हो जायेंगे।

हाँ, हिन्दू-मुस्लिम समस्याको हल अब अपने आप ही होना है। ईश्वरकी गति कोई नहीं जानता और जिस विषयमें रास्ता दिखानेके लिए भीतरसे कोई निश्चित आवाज नहीं आती हो, उस विषयमें कोई हस्तक्षेप न करनेमें ही मैं विश्वास रखता हूँ।

मैं इसी महीनेकी २२ तारीखको मसूरीके लिए रवाना होनेकी आशा रखता हूँ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४७५) की माइक्रोफिल्मसे।

३६९. पत्र: गोविन्दजी पीताम्बरको

साबरमती आश्रम
शनिवार, १७ अप्रैल, १९२६

भाई गोविन्दजी पीताम्बर

आपका पत्र मिला। सप्तपदीके साथ-साथ गणेशकी प्रतिष्ठासे लगाकर होमतक की सब क्रियाएँ आश्रमकी सीमामें, वस्तुतः आश्रमके मैदानमें हुई थीं। यहाँसे शास्त्रीजीको भेजना तो मैं मुश्किल मानता हूँ। आप मोरबीमें कोशिश करना। न हो सके तो लिखना। मैं यथाशक्ति प्रयत्न करूँगा। यहाँ हुई विधिमें प्रयुक्त सारे श्लोक मेरे पास छपे हुए रूपमें नहीं हैं। उन्हें छपवानेका इरादा है, लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा। मालियाके मेहमानोंको धीरजपूर्वक यह बात समझा देना। यहाँ हुई विधिमें प्रयुक्त श्लोकोंको यदि वहाँ कोई ब्राह्मण तैयार हो तो उसके उपयोगके लिए भेज सकूँगा।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८८९) की फोटो-नकलसे।