३६७. पत्र: न॰ चि॰ केलकरको
साबरमती आश्रम
१७ अप्रैल, १९२६
आपका तार मिला। उत्तरमें मैंने निम्नलिखित तार भेजा है:
"जरूर आइए, मनुष्य कुछ सोचता है, प्रभु कुछ और करता है।"
इस अनौपचारिक सम्मेलनके बारेमें मैं कुछ नहीं जानता था। पण्डितजीने मुझे तार भेजा है कि मसूरी जानेसे पहले अपनी सुविधानुसार तिथियाँ तय करके उनको तथा जयकरको सूचित कर दूँ। मैंने तदनुसार दोनोंको तार भेज दिये। इसपर जयकरने तार द्वारा मुझे खबर भेजी है कि वे आयेंगे लेकिन मुझे अपनी ओरसे आपको, डॉ॰ मुंजे तथा श्री अणेको भी तार भेज देना चाहिए था। सो मैंने आप तीनोंको तार भेज दिये। सम्मेलन सफल होगा या नहीं, यह तो इस बातपर निर्भर करता है कि जब हम सब लोग एकत्र होंगे तब किस तरीकेसे काम लेते हैं। मुझको इस विषयमें पण्डितजीने कुछ भी नहीं लिखा है कि वे सम्मेलनमें क्या करना चाहते हैं, उससे किस बातकी अपेक्षा रखते हैं अथवा किन कारणोंसे उन्होंने यह अनौपचारिक सम्मेलन करना तय किया।
अभी-अभी मुझे डॉ॰ मुंजे और श्री अणेके तार मिले हैं। वे कहते हैं, सम्मेलनमें शरीक होंगे। श्री अणेका कहना है कि बंगाल तथा अन्य स्थानोंके मित्रोंको भी आमन्त्रित करना चाहिए। लेकिन, मेरा खयाल है, पण्डितजीने खुद ही निमन्त्रण भेज दिये हैं।
मंगलवारको आपसे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त करनेकी आशा में,
हृदयसे आपका
'केसरी' कार्यालय
पूना
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४७४) की फोटो-नकलसे।