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३६५. पत्र: आर॰ एस॰ अय्यरको

साबरमती आश्रम
१७ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और सूतका पैकेट भी मिला। कताई विभागके प्रबन्धकका कहना है कि यह सूत महीने भर बाद ही बुना जा सकेगा। इस विभागमें कामकी बराबर भरमार रहती है और बाहरसे आये आर्डरोंको अपनी बारीका इन्तजार करना पड़ता है।

५० इंच चौड़ाईकी खादी प्रति गज ६/२ आनेके हिसाबसे बुनी जाती है। आपका उत्तर आनेपर आपके आर्डरको बारीमें लगा दिया जायेगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आर॰ एस॰ अय्यर


मार्फत, 'टाइम्स ऑफ इंडिया'


बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४७१) की माइक्रोफिल्मसे। {{c|३६६. पत्र: कृष्णदासको

साबरमती आश्रम
१७ अप्रैल, १९२६

प्रिय कृष्णदास,

यही सोच रहा था कि इतने दिनोंसे तुमने कोई चिट्ठी-पत्री क्यों नहीं लिखी। अब जान गया। यहाँसे बतानेको कोई खास खबर तो है नहीं। देवदासको पीलिया हो गया था, इसलिए वह यहाँ आ गया है और उसका काम सँभालनेके लिए प्यारेलाल देवलाली चला गया है। प्रभुदास लोनावलासे लौट आया है। अभी भी उसको काफी हिफाजत और देखभालकी जरूरत है। देवदास अब पहलेसे काफी अच्छा है, मगर बहुत कमजोर हो गया है। जमनाबहन अभी आज ही यशवन्त प्रसादके साथ आई है। मीरा ठीक-ठाक है। वह सुरेन्द्रसे हिन्दी नियमपूर्वक सीख रही है। आशा है तुम्हें 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' नियमित रूपसे मिल रहे होंगे।

तुम्हारा,

श्रीयुत कृष्णदास
दरभंगा

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४७२) की माइक्रोफिल्म से।