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३६४. पत्र: दयालजीको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार, १६ अप्रैल, १९२६

भाईश्री ५ दयालजी,

आपके पत्रसे मैं देखता हूँ कि सूरतके विनय मन्दिरके[१] लिए जो लोग चन्दा देते हैं, उनकी सभा अभी शीघ्र ही होनेवाली है। जो भाई पैसा देते हैं उन्हें मेरी ओरसे यह सन्देश दीजिए:

विनय मन्दिर सुचारु-रूपसे चले और उसमें मूल सिद्धान्तोंपर अच्छी तरह अमल किया जाये इस उद्देश्यसे मन्दिरकी प्रबन्ध समितिने उसका प्रबन्ध मुझे सौंपनेका निश्चय किया है और मैंने प्रबन्ध अपने हाथमें ले लेना स्वीकार भी किया है। मैं भाई वल्लभभाईके साथ मिलकर इस सम्बन्धमें एक विशेष समिति बनानेकी व्यवस्था भी कर रहा हूँ। यह बात सर्वविदित है कि मैं स्वयं तो देखरेख नहीं कर सकता इसलिए समिति—जैसा कुछ साधन तो चाहिए ही। मैंने भाई नरहरिको[२] जबतक और प्रबन्ध नहीं हो जाता तबतक आचार्यपद लेनेके लिए लिखा है। इस विषयपर और अधिक विचार कुलनायक भाई नृसिंह प्रसादजीके साथ कर रहा हूँ। मुझे उम्मीद है कि चंदा देनेके बारेमें सब भाइयोंने १९२० में जो प्रस्ताव पास किया था उसके अनुसार ही वे चन्दा देते रहेंगे। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि मन्दिरके प्रबन्धका हिसाब-किताब अच्छी तरह रखा जाये, इसका बन्दोबस्त अवश्य किया जायेगा।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४६५) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. माध्यमिक पाठशाला।
  2. नरहरि परीख।