पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/३५८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३६२. पत्र: जयकुँवरको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार, १६ अप्रैल, १९२६

चि० जेकी,

तुम्हारा पत्र मिला। मुझे जब उस सीलोनी भाईका पत्र मिला था तभी मैं जो आवश्यक है वह सब कर चुका था, ऐसा मुझे खयाल है। डाक्टरको तो मैंने कागजात भेज दिये थे। उनका जवाब मुझे अभीतक मिला नहीं है। मैं फिर लिख रहा हूँ। मुझसे जो-कुछ बनेगा सो करनेमें मैं चूकूँगा नहीं। मेरी तबीयत अच्छी रहती है।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८८८ वी) की माइक्रोफिल्मसे।

३६३. पत्र: प्राणजीवन मेहताको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार, १६ अप्रैल, १९२६

भाईश्री ५ प्राणजीवन,

मैंने चि॰ जेकीके सम्बन्धमें आपको जो पत्र लिखा था वह मिल गया होगा। इसके साथ दूसरा पत्र भेज रहा हूँ। भाई मणिलालका पत्र भी आया है। उसका भी यही अभिप्राय है। इस बारेमें तुरत निर्णय करना। मैं आपके पत्रकी लम्बे समयसे राह देख रहा हूँ। आपकी तबीयत के बारेमें मुझे विस्तारसे समाचार मिला है। २२ तारीखको मसूरीके लिए रवाना होऊँगा।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४६४) की फोटो-नकलसे।