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पत्र: मणिलाल डाक्टरको

  ही प्रिय लगा। इसी शांतिको कायम रखकर आप जो कुछ योग्य हो वह करें। यदि मेरे उत्तरमें कहीं भी स्पष्टताका अभाव है तो अवश्य दुबारा पूछिएगा।

जो लोन चरखा संघको देनेका आपने कहा है उसमें से कुछ हिस्सा बम्बईके मालपर लेनेका इरादा है। बंबईमें चरखासंघके दो गोडाऊन हैं। आप चाहें तो उसमें से आप एकका कबजा ले लें, और इसीमें लोन कवर[१] करनेके लिये जितना माल चाहिए इतना रखा जाय; और उससे जादा माल भी आप संमत हों तो रखना चाहते हैं, जिससे एक गोडाऊनका किराया हम बचा सकें। और वह माल हम जब चाहें तब ले सकें ऐसा प्रबंध होना चाहिये। जो माल चरखा संघ सीक्योरिटिके[२] बाहर रखे उसमें हमेशा वधघट होनी होगी इसलिये हमेशा उसमें प्रवेश करनेका सुभीता मिलना चाहिए।

आपका,
मोहनदास

मूल पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६१२५) से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

३६१. पत्र: मणिलाल डाक्टरको

साबरमती आश्रम
शुक्रवार, १६ अप्रैल, १९२६

भाईश्री मणिलाल,

आपका पत्र मिला। मेरी यह धारणा थी अवश्य कि मैं जेकीको बच्चोंका कब्जा सौंपने की बात समझा सकूँगा लेकिन बादमें महसूस हुआ कि मैंने अपने बूतेसे बाहरकी बात की थी। जिस बातपर तुम दोनोंके विचार मेल खायें उसी बातपर मैं अमल कर सकता हूँ। इसलिए मेरा वर्तमान प्रयत्न थोड़ी-बहुत मदद प्राप्त करनेतक ही सीमित है। आपके विश्लेषणके साथ मैं सहमत नहीं हो सकता। मेरा अनुभव इससे विपरीत है। व्यक्तियोंमें दोष तो सब जगह देखनेमें आते हैं। अपने लोगोंमें जो कुछेक दोष दीखते हैं, वे हमारी गुलामीकी परिस्थितिका परिणाम हैं। और हमारी गुलामी भी कोई पाँच-पच्चीस वर्षकी थोड़े ही है? लेकिन हमारे लिए इस बहसमें पड़ना निरर्थक होगा। आपके विचार अत्यन्त दृढ़ हो गये हैं। मैं जानता हूँ कि मुझमें ऐसी शक्ति नहीं है कि उन्हें बदल सकूँ। मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि कैसे भी हो आपका मन स्वस्थ हो जाये और आप शान्तिसे रहें। आपपर जो बीती है उसमें कुछ भी बाकी नहीं रहा है।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८८८ ए) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. मूलमें ये शब्द अंग्रेजोमें लिखे हैं।
  2. मूलमें ये शब्द अंग्रेजोमें लिखे हैं।
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