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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसने कहा कि आपने सीधे तो उससे कुछ कहा नहीं है, और वह श्रीमती देवधरके जवाबकी राह देख रही है। आशा है, वे स्वस्थ और प्रसन्न होंगी। आप उनसे कह दें कि वे जब कभी आश्रम आना चाहें, आ सकती हैं। इसे वे अपना ही घर समझें।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत गोपालकृष्ण देवधर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४६०) की माइक्रोफिल्मसे।

३५७. पत्र: सुरेशचन्द्र बनर्जीको

साबरमती आश्रम
१६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

अभय आश्रममें तैयार चीजोंकी कीमतोंकी सूची पढ़कर लोगोंने जो पत्र लिखे, उसका एक नमूना साथमें भेज रहा हूँ। क्या आप बाहरसे आये आर्डरोंपर माल देना चाहते हैं। अगर देना चाहते हों तो इस पत्र-लेखकको लिखिए और मुझे भी सूचित कीजिए ताकि जिन दूसरे लोगोंने पत्र लिखे हैं, उन्हें भी तदनुसार सूचना दी जा सके।

आशा है, बम्बईमें आपको पैसा आसानीसे मिल गया होगा।

हृदयसे आपका,

डॉ॰ सुरेशचन्द्र बनर्जी
अभय आश्रम, कोमिल्ला

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४६१) को माइक्रोफिल्मसे।

३५८. पत्र: प्यारेलाल नैयरको

साबरमती आश्रम
१६ अप्रैल, १९२६

प्रिय प्यारेलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। कुल मिलाकर सोचनेपर लगता है कि अगर डॉ॰ मेहता कोई पक्का निर्देश नहीं भेजते तो मथुरादासके लिए देवलालीमें बने रहना भी शायद उतना ही अच्छा होगा। लेकिन, अगर खुद उसीकी इच्छा हो और उसमें पर्याप्त शक्ति हो तो मैं जानता हूँ कि मई महीना बितानेके लिए सिंहगढ़ एक आदर्श स्थान है। वहाँ उसके रहनेका बिलकुल अलग प्रबन्ध हो सकता है। उसे किसीसे मिलनेकी जरूरत नहीं होगी। वहाँ पूरी शान्ति है, धूल-गर्द कुछ नहीं है और स्थान बहुत ठंडा