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३५५. पत्र: गिरिराज किशोरको

साबरमती आश्रम
१६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। पुनर्विवाह न करनेके आपके निर्णयके लिए आपको बधाई। पता नहीं, आप यहाँ सुखी रह पायेंगे या नहीं। यहाँ तो हर आश्रमवासीसे कड़ी मेहनतकी अपेक्षा रखी जाती है। पाखाना उठाने, खेतमें काम करने आदिसे शुरू करके धुनाई, कताई और बुनाईके काममें कुशलता प्राप्त करनी होती है। मेरा व्यक्तिगत मार्ग-दर्शन तो आपको कम ही मिल पायेगा। अगर यह जीवन आपको रास आये तो भीड़-भाड़, जो इन दिनों बहुत ज्यादा है, कम होते ही आपको बुलाया जा सकेगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत गिरिराज किशोर,


मार्फत श्रीयुत आनन्दीलालजी
स्टेशन मास्टर


मोरक बी॰ बी॰ एण्ड सी॰ आई॰ रेलवे

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४५९) की माइक्रोफिल्म से।

३५६. पत्र: गोपालकृष्ण देवधरको

साबरमती आश्रम
१६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपके दोनों पत्र मिले। उनके मजमून मैंने मनोरमाको समझा दिये। वह कहती है कि श्रीमती देवधरके उत्तरकी प्रतीक्षा करेगी। आपके सुझावपर उसने उन्हें पत्र लिखा है। लगता है, यहाँसे जानेकी उसकी इच्छा नहीं हो रही है। लेकिन, अगर आप और श्रीमती देवधर उसको लिखें तो शायद सेवासदन चली जाये।

मैं जानता हूँ कि वह वहाँका पूरा शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करके जितनी कमाई कर सकेगी, उतनी कमाई करने लायक यहाँ रहनेसे तो कभी भी नहीं बन पायेगी। मैंने उसे यह बात बता भी दी है। लेकिन यहाँ उसे अच्छा लग रहा है, शायद इसीलिए वह यहाँसे कहीं जाना नहीं चाहती। हाँ, अगर आप उसे कोई निश्चित निर्देश दें तो वह जा सकती है, क्योंकि जैसे ही मैंने उससे आपके पत्रकी चर्चा की,