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३५४. पत्र: धनगोपाल मुखर्जीको[१]

साबरमती आश्रम
१६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैंने आपको उसी पतेपर लिखा, जो आपने दिया था। आपका यह अनुमान सही है कि आप जो जीवनी लिखना चाहते हैं उसकी सामग्री एकत्र करनेके लिए खास तौरपर आपका यहाँ आना मुझे उचित नहीं लगता।

मैं 'यंग इंडिया' के प्रबन्धकको पत्र लिखकर उन्हें आपके निर्देश सूचित करने जा रहा हूँ। धन्यवाद। मैं बिलकुल ठीक हूँ। लगातार यात्रा करनेका सिलसिला तोड़ देनेसे जो आराम मिल रहा है, उससे मुझे काफी लाभ हो रहा है।

हृदयसे आपका,

घनगोपाल मुखर्जी


१९०४, टाइम्स बिल्डिंग
टाइम्स स्क्वेयर


न्यूयार्क सिटी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२४६५) को फोटो-नकलसे।

  1. यह पत्र धनगोपाल मुखर्जीके उस पत्रके उत्तरमें भेजा गया था जिसमें उन्होंने लिखा था: "कोई तीन हफ्ते पहले आपका तार मिला था, जिसमें आपने कहा था, 'पत्रकी प्रतीक्षा करें?' लेकिन, अबतक तो पत्र आया नहीं मुझे लगता है, इसका मतलब यह हुआ कि मैं आपने मिल नहीं सकता——कमसे-कम अभी... उन लोगोंने मुझे अखवार भेजना क्यों बन्द कर दिया है?...क्या आप प्रबन्धकसे मुझे मेरे चन्देके बारेमें लिखनेको कहेंगे? वे पहली किस्तसे ही आपके संस्मरण भेज दें।" (एस॰ एन॰ १२४६५)