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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  अध्ययन करें——लेकिन अखबारी खबरोंके आधारपर नहीं, बल्कि मूल लेखोंके आधारपर। कारण, जिन बातोंमें अखबारोंकी दिलचस्पी नहीं होती, उनके बारेमें उनमें सही और पूरी जानकारी नहीं दी जाती। मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि अंग्रेजी सरकारकी प्रकट और गुप्त, दोनों तरहकी एजेंसियाँ परिस्थितिका बिलकुल गलत चित्र पेश करनेमें लगी हुई हैं। इसकी गुप्त एजेंसी अत्यन्त संगठित है, इसके सदस्योंको मोटी-मोटी तनख्वाहें मिलती हैं। इस एजेंसी द्वारा फैलाये गये झूठोंका निराकरण भारतका कोई भी देशभक्त-संगठन नहीं कर सकता। इस एजेंसीकी शनि-दृष्टिसे एशिया, बल्कि विश्वका महान् कवि[१] भी नहीं बच सका। ब्रिटिश सरकारकी ओरसे जिन बातोंका प्रचार किया जा रहा है, उनका खण्डन अगर कर सकते हैं तो वह विभिन्न यूरोपीय देशोंके निष्पक्ष और समझदार लोग ही कर सकते हैं।

दूसरे सवालका जवाब देना जरा ज्यादा कठिन है।

अगर यह पूछा गया होता कि भारतने दुनियाको क्या सिखाया है तो मैं प्रश्नकर्त्तासे मैक्समूलर-कृत, 'व्हाट इंडिया केन टीच अस?' ('भारत हमें क्या सिखा सकता है?') पढ़ने को कहता। लेकिन, यहाँ सवाल भारतके अतीतके बारेमें नहीं, बल्कि वर्तमानके बारेमें पूछा गया है। इसलिए मैं स्पष्ट शब्दोंमें स्वीकार करूँगा कि अभी तो भारत दुनियाको कुछ नहीं सिखा सकता। वह विशुद्ध रूपसे अहिंसात्मक और सत्यनिष्ठ तरीकेसे स्वतन्त्रता प्राप्त करनेकी कोशिश कर रहा है। उस आन्दोलनसे सम्बद्ध हममें से कुछ लोगोंका उन तरीकोंमें अटूट विश्वास है, लेकिन उस विश्वासको भारतके बाहरके लोगों के बीच आनन-फानन फैला देना सम्भव नहीं है। अभी तो यह कहना भी सम्भव नहीं है कि भारतके सभी शिक्षित लोग भी वैसा विश्वास करते हैं। लेकिन, इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि भारत अहिंसात्मक तरीकोंसे अपनी स्वतन्त्रता फिर प्राप्त कर लेता है तो इसका मतलब यह होगा कि स्वातन्त्र्य संघर्षमें लगे अन्य देशोंतक उसने अपना सन्देश पहुँचा दिया है, और उससे भी बढ़कर शायद यह कि उसने विश्व-शान्तिमें ऐसा योग दिया है, जैसा आजतक दुनियामें किसी देशने नहीं दिया है।

खादीके उत्पादन और बिक्रीके मासिक आँकड़े

जनवरी महीनेमें खादीके उत्पादन और बिक्रीके सम्बन्धमें अबतक जो आँकड़े प्राप्त हुए हैं, नीचे दिये जा रहे हैं।[२] मुझे पूरी आशा है कि अन्य प्रान्त या संस्थाएँ भी, जिन्होंने अबतक अपने आँकड़े नहीं भेजे हैं, शीघ्र ही उन्हें भेज देंगी ताकि हम अद्यतन आँकड़े दे सकें।

आंध्रके आँकड़े अधूरे हैं। ६१ में से सिर्फ २५ केन्द्रोंने प्रान्तीय कार्यालयको अपनी रिपोर्ट भेजी है। बम्बईके आँकड़ोंमें सिर्फ प्रिंसेस स्ट्रीट, खादी भण्डार और चरखा संघ भण्डार, १४, दादी सेठ अगयारी लेन, कालबादेवी रोड़ और राष्ट्रीय स्त्री-सभाके ही आँकड़े शामिल हैं। सैंडहर्स्ट रोड खादी भण्डारके आँकड़े उपलब्ध नहीं है। बंगालके

  1. रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
  2. आँकड़े यहाँ नहीं दिये गए हैं।