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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वार्थपरता और निर्मम स्पर्धाके रूपमें प्रकट होता है और दूसरी ओर स्वतन्त्रताके अपहरण, अरक्षाकी भावना, तरह-तरहके भय, स्वावलम्बन और आत्मनिर्भरता के ह्रास, पतन, दरिद्रता, तथा मानवीय गरिमा और आत्मसम्मानके क्षयके रूपमें सामने आता है।

कारखानों आदिमें दुर्घटनाएँ हो जानेसे मरनेवालों और अपंग तथा लूले-लंगड़े हो जानेवालोंकी संख्या, युद्धमें मरनेवालों तथा अपंग और लूले-लंगड़े हो जानेवालोंकी अपेक्षा बहुत अधिक है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे आधुनिक उद्योग प्रणालीके कारण होनेवाले रोगों और शारीरिक क्षयको देखकर दंग रह जाना पड़ता है। कारण, बड़े-बड़े नगर बसनेका कारण उद्योग ही हैं और धुआँ, धूल, शोरगुल, दूषित वायु, सूर्यके प्रकाशका अभाव, घरसे बाहरकी जिन्दगी, गन्दी बस्तियाँ, रोग, वेश्यावृत्ति और अस्वाभाविक जीवन, यही तो इन नगरोंकी खूबियाँ हैं।

विज्ञापनके पीछे जितना पैसा बरबाद किया जाता है, वह सचमुच "हैरतमें डालनेवाला" है।

ब्रिटिश इन्कारपोरेटेड सोसाइटी ऑफ एडवर्टीजमेंट कंसल्टेंट्सके अध्यक्षने हालमें हिसाब लगाकर देखा है कि सिर्फ ब्रिटेनमें विज्ञापनोंपर प्रति वर्ष १७५,०००,००० पौंड खर्च किया जाता है।

इसकी दूसरी उल्लेखनीय विशेषता "परोपजीविता" है।

मनुष्यको मशीनका गुलाम बना दिया जाता है। धनी और मध्यम वर्गों लोग असहाय हो जाते हैं और वे श्रमिक वर्गोंकी मेहनतके आसरे जीते हैं तथा श्रमिक वर्गके लोगोंमें भी चूँकि खास-खास काम करनेकी ही कुशलता और क्षमता रह जाती है, इसलिए वे भी असहाय हो जाते हैं। शहरमें रहनेवाला सामान्य व्यक्ति अपनी जरूरतका कपड़ा तैयार नहीं कर सकता और न अपनी जरूरतका खाद्य पदार्थ पैदा या तैयार कर सकता है। नगर, गाँवोंके आसरे जीने लगते हैं, औद्योगिक राष्ट्र कृषक-राष्ट्रोंके श्रमकी बदौलत पलते हैं। समशीतोष्ण जलवायुमें रहनेवाले लोग उत्तरोत्तर गर्म देशोंके लोगोंपर निर्भर होते जाते हैं। सरकारें जनताकी कमाईके सहारे चलती हैं, सेना नागरिकोंका कमाया हुआ खाती है। आमोद-प्रमोदके मामलेमें भी लोग परावलम्बी और निष्क्रिय हो जाते हैं। अपने रंजनकी सृष्टि स्वयं करनेके बजाय वे उसे बाहरी साधनोंसे पाना चाहते हैं। वे सिनेमा घरों, रंगशालाओं और संगीत भवनोंमें उमड़ पड़ते हैं। वे दूसरोंको क्रिकेट आदि खेलते हुए देखते हैं।

इस परोपजीविताके साथ-साथ बहुत अधिक गैर-जिम्मेवारी भी आ गई है। उद्योगपति या बैंकोंके स्वामी यूरोपमें बैठकर ऐसे हुक्म निकालते हैं जो मध्य आफ्रिकाके नीग्रो लोगोंके जीवनको गम्भीर रूपसे प्रभावित करते हैं।