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३५२. टिप्पणियाँ

मशीनोंसे मिलनेवाले सबक[१]

"करेंट थॉट" के फरवरी महीनेके अंकमें श्री रिचर्ड बी॰ ग्रेगका एक पत्र प्रकाशित हुआ है। यह पत्र उन्होंने "मशीनोंसे मिलनेवाले सबक" के बारेमें अपने एक मित्रको लिखा था। श्री ग्रेग अमेरिकाके एक भूतपूर्व वकील हैं, और उन्हें अपने देशका काफी व्यापक अनुभव है। अपने पत्रमें उन्होंने जिन चीजोंकी चर्चा की है, वे उन्हीं चीजोंके बीच रहे और जिये हैं और एक समय उन्होंने उनके विकासमें भी योग दिया था। इसलिए, उन्होंने उनके बारेमें बहुत अधिकारपूर्वक लिखा है। वे कहते हैं: अधिकांश लोग मशीनोंके तात्कालिक परिणामोंको देखकर ही उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और धीरे-धीरे बादमें चलकर उनके जो परिणाम होते हैं, उनकी ओरसे वे अपनी आँखें बन्द किये रहते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि उनके ये दूरवर्ती परिणाम ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं।

इसके बाद उन्होंने मशीनोंके बढ़नेसे पैदा होनेवाली बुराइयोंका उल्लेख किया है। इस सूचीमें सबसे पहला स्थान उन्होंने चन्द लोगोंके हाथोंमें भौतिक शक्ति और सम्पत्तिके भारी केन्द्रीकरणको दिया है। श्री ग्रेगने ठीक ही कहा है:

मशीनों और आधुनिक उद्योगोंने पैसेको करोड़ों लोगोंके हाथोंसे छीनकर उसको व्यवस्था और नियन्त्रणका अधिकार अपेक्षाकृत बहुत थोड़े लोगोंके हाथोंमें रख दिया है और बैंक प्रणाली तथा साखकी आधुनिक प्रवृत्तियोंके कारण तो सारे साधनों, कारखानों और मिलोंके नियन्त्रणका अधिकार और भी कम लोगोंके हाथोंमें चला गया है।

क्या हम नहीं देख रहे हैं कि हमारे देशमें भी यही प्रक्रिया चल रही है? क्या यहाँ भी करोड़ों लोगोंको चूसकर उनके झोपड़ोंसे हजारों मील दूर स्थित बड़े-बड़े उद्योगोंका पेट नहीं भरा जा रहा है? श्री ग्रेग कहते हैं:

यूरोप, अमेरिका और एशिया तथा आफ्रिकाके अधिकांश हिस्सोंमें चल रहे सारे उद्योगोंका अन्तिम और वास्तविक नियन्त्रण जिन लोगोंके हाथोंमें है, उनकी संख्या शायद १,५०० से अधिक न होगी, कदाचित् कम ही हो।

ऐसी व्यापक शक्तिका लोभ संवरण करना मानव-स्वभावके लिए शक्य नहीं है। इसका नतीजा एक ओर तो अत्याचार, झूठे बड़प्पन, अहंकार, लालच,

  1. गांधीजीने इसे ११ अप्रैल, १९२६ को बोलकर लिखवाया था। देखिए "पत्र: रिचर्ड बी॰ ग्रेगको", ११-४-१९२६।