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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दलके बिल्ले——नीले फीतोंसे बने फूल——बेच रहे थे, श्री बाल्डविन साम्राज्यके उद्योगोंको बढ़ावा देनेके लिए पिकैडिलीमें थाल भर-भरकर ब्रिटेनके बने खिलौने बेच रहे थे, श्री रैमजे मैक्डोनॉल्ड कॉर्डरायकी पोशाक पहने, गुलुबन्द लगाये लाइम हाउसमें मजदूरोंके बीच लाल झंडे बेच रहे थे या क्लैडेसाइडके बोलशेविकोंने अपने चिह्न हँसिये और हथौड़ीकी अनुकृतियाँ बेचनके लिए क्लैडेसाइडमें एक दुकान खड़ी कर ली थी तो सभी वर्गोंके लोग यही मानेंगे कि उनके नेता पागल हो गये हैं।

स्वभावतः, इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि खादी बेचनेके लिए फेरी लगानेवाले गण्यमान्य लोग——जैसे कि पण्डित नेहरू और फेरी लगानेमें उनका साथ देनेवाले श्री रंगास्वामी अय्यंगार——पागल हो गये हैं। लेखकने जैसी भाषाका प्रयोग किया है, वह न केवल अपमानजनक बल्कि भ्रामक भी है। ब्रिटेनके एक टोरी द्वारा बेचे जानेवाले "टोरी दलके चिह्न, नीले फीतोंसे बने फूलों" और खादीके बीच कैसे समता हो सकती है? खादी किसी दलका प्रतीक नहीं है। चाहे सही हो या गलत, हजारों भारतीय उसे विशिष्ट वर्गों और सर्वसाधारणको एक-दूसरेसे जोड़नेवाले सच्चे स्नेह-बन्धनका प्रतीक मानते हैं। कारण, जिस विशिष्ट वर्गके जरिये ब्रिटिश सरकार करोड़ों मेहनतकश मूक मानवोंपर अपना आधिपत्य जमाये हुए है और जनसाधारणको ब्रिटिश सरकारका खर्च चलानेके लिए जिस तरह चूसा जाता है, उसका कुछ प्रतिदान ये विशिष्ट वर्गके लोग खादीके द्वारा ही दे सकते हैं। लेखक हमारे नेताओंका ऐसा अपमान सिर्फ इसी कारण कर पाया है कि लिबरल दलीय राजनीतिज्ञोंने खादी और उससे सम्बन्धित तमाम चीजोंको हिकारतकी नजरसे देखनेका फैशन चला दिया है। इस बातको कौन भूला है कि जब विश्व-युद्ध छिड़ा था, उस समय बूढ़े-जवान, औरत-मर्द, छोटे-बड़े बल्कि ऐसे सभी लोगोंसे, जिन्हें फौजमें भरती नहीं किया गया या किया नहीं जा सका, विभिन्न अस्पतालोंमें दाखिल किये जानेवाले घायल सिपाहियोंके लिए कपड़े सोनेकी अपेक्षा की जाती थी, और वास्तवमें वे सबके-सब कपड़े सीते भी थे। उस समय लोग यह छोटी-सी सेवा करनेके लिए एक-दूसरेसे होड़ करते थे और जिन्हें सिलाई नहीं आती थी, वे अपने पड़ोसियोंसे सिलाईकी प्रारम्भिक बातें सीखकर अपनेको कृतार्थ मानते थे। ब्रिटेनकी जनतापर जो भयंकर विपत्ति आई थी, उससे छोटे-बड़ेका सारा भेद-भाव मिट गया। अतएव मैं तो कहूँगा कि अगर उस समय इंग्लैंडमें यह बात हर व्यक्तिके लिए देशभक्तिपूर्ण और आवश्यक थी कि वह सिलाई और ऐसे ही दूसरे छोटे-मोटे सैकड़ों काम करे, जो सामान्य परिस्थितियोंमें वह कभी नहीं करता था, तो यहाँ आज हरएक भारतीयके लिए यह बात उसकी अपेक्षा हजार-गुना ज्यादा देशभक्तिपूर्ण और आवश्यक है कि तमाम विदेशी कपड़ोंका त्याग करके वह सिर्फ खादी पहनने और इस प्रकार वह देशको एकमात्र धन्धा अर्थात् हाथ-कताईका धन्धा——सुलभ कराये, जिसे भारतके करोड़ों लोग अपना सकते हैं।

अंग्रेजी पुस्तकोंमें हमने पढ़ा है कि जब किसी आन्दोलनके विरोधी उसका उपहास करते हों तब कहा जा सकता है कि वह आन्दोलन आगे बढ़ रहा है और