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पण्डित नेहरू और खादी

जानकारी भेजी जायेगी, वह उसका स्वागत करेगा और उसे अगले संस्करणमें शामिल कर लेगा।

पुस्तक अंग्रेजीके साथ ही हिन्दीमें भी प्रकाशित हो रही है। हिन्दी पुस्तकमें भी वही सारे चित्र रहेंगे और उसका आवरण भी वैसा ही रहेगा। हिन्दी हो या अंग्रेजी, पुस्तक ७ आनेमें आश्रम, साबरमती, से प्राप्त की जा सकती है जिसमें डाक-खर्च भी शामिल है।

मुझे उम्मीद है कि जिन म्युनिसिपल स्कूलों और राष्ट्रीय पाठशालाओंमें तकली दाखिल कर दी गई है, ऐसे सभी स्कूलों और पाठशालाओंका प्रत्येक कताई शिक्षक अपने और अपने विद्यार्थियोंके मार्ग-दर्शनके लिए यह पुस्तिका प्राप्त करेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५-४-१९२६

३५०. पण्डित नेहरू और खादी

पण्डित मोतीलालजी कभी भी 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रिय पात्र नहीं रहे हैं। उन्होंने जो सबसे ताजा अपराध किया है वह यह कि जिस इलाहाबाद नगरमें अभी कुछ ही वर्ष पहले उन्हें अपनी शानदार मोटर गाड़ीके बिना शायद ही कहीं आते-जाते देखा जा सकता था, उसी नगरमें उन्होंने खादी बेचनेके लिए फेरी लगाई। लेकिन, लेखककी सुष्ठु और श्लील भाषा में, "भारतमें भी लोग अवश्य स्वीकार करेंगे कि पण्डितजी अपने आपको खूब गधा बना रहे हैं।" कितना अच्छा हो कि बहुत-से लोग पण्डितजीका अनुकरण करके वह उपाधि अर्जित करें, जिस उपाधिसे 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने इतनी शिष्टताके साथ पण्डितजीको विभूषित किया है! यह समय आम तौरपर ऐसा है जब विरोधियोंसे ऐसे अपशब्द सुनकर लोगोंको प्रसन्न होना चाहिए। उनकी प्रशंसाको सन्देहकी दृष्टिसे देखना चाहिए। यूनानी लोग जब कोई उपहार लेकर आते थे तो रोमवालोंको विशेष डर लगता था।

'टाइम्स' के लेखकने कांग्रेस, खादी और कांग्रेसियोंपर कीचड़ उछालनेमें अपने-आपको भी मात कर दिया है। पाठक स्वयं ही इसकी परीक्षा करके देखें। लेखक कहता है:

इलाहाबादसे सच्चे हृदयसे भेजे एक तारसे यह बात बिलकुल साफ हो जाती है कि कांग्रेसका पूरा पतन हो चुका है, तथाकथित कांग्रेसका सिद्धान्त सर्वथा निरर्थक है और कांग्रेसके समर्थकोंके पास कोई भी बुद्धि-संगत राजनीतिक विचार नहीं है।

लेखक आगे कहता है:

अगर ब्रिटेनकी जनताको मालूम हो कि लॉर्ड बर्कनहेड, ब्रिटिश झंडेका वास्कट पहने हुए, ट्रैफालगर स्क्वेयरकी सिंह-मूर्तियोंके नीचे खड़े होकर टोरी