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३४९. "तकली शिक्षक"

यह एक पुस्तिकाका नाम है, जिसमें ८० पृष्ठ हैं। इसे अखिल भारतीय चरखा संघ अहमदाबादने प्रकाशित किया है और यह उसीके कहनेपर सर्वश्री रिचर्ड बी॰ ग्रेग और मगनलाल खु॰ गांधीने तैयार की है। इसमें बहुत सोच-समझकर २३ साफ-सुथरे चित्र दिये गये हैं। इन चित्रोंमें तकलीकी अलग-अलग किस्में बताई गई हैं और घरेलू उपयोग और राष्ट्रीय महत्त्वके इस छोटे-से यन्त्रको हाथसे पकड़ने और चलानेकी तरह-तरह की मुद्राएँ दिखाई गई हैं। पुस्तिकामें तकलीसे सूत कातनेकी बिलकुल सही-सही विधि दी गई हैं, ताकि इसे ध्यानसे पढ़नेवाला कोई भी व्यक्ति तकलीसे कातनेकी कलामें सिद्धहस्त हो सके। इसमें तकलीके विभिन्न उपयोग भी बताये गये हैं और कई स्थलोंपर चरखेके मुकाबले तकलीसे काम लेनेके लाभ भी दिखाये गये हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि तकली कैसे बनाई जाये और अन्तमें इस यन्त्रके बारेमें ऐतिहासिक जानकारी देते हुए कहा गया है कि इसीके सहारे ढाकाके कातनेवाले लोग ऐसा बारीक और अच्छा सूत कातते थे, जिसकी बराबरी आजतक कोई मशीन भी नहीं कर पाई है। ऐसी बहुत-सी बातें बताई गई हैं जो तकलीपर कातनेवाले और चरखा चलानेवाले, दोनोंके लिए उपयोगी हैं।

तकलीका शैक्षणिक महत्त्व समझाते हुए लेखकद्वय कहते हैं कि तकली चलानेसे आदमीमें धैर्य, लगन, एकाग्रता, संयम, शान्ति और किसी कामसे सम्बन्धित छोटी-छोटी क्रियाओंको भी ध्यानपूर्वक करनेके महत्त्व और मूल्यकी समझ आती है। वह एक साथ एकाधिक काम कर सकनेकी क्षमता प्राप्त करता है और तकली चलानेका तो वह इतना अभ्यस्त हो जाता है कि वह काम उससे लगभग अनायास ही बड़ी खूबीके साथ होता चला जाता है। तकली उसकी इन्द्रियोंको अधिक संवेदनशील बनाती है; उसका स्पर्श अचूक हो जाता है और उसमें एक लाघव आ जाता है। अपने स्नायुओंपर उसका ठीक काबू हो जाता है और वह उनमें आवश्यकतानुसार ताल-मेल बैठा पाता है। उसे इस बातकी प्रतीति हो जाती है कि सबके मिल-जुलकर कोई काम करनेका और व्यक्ति द्वारा किसी कामको नियमपूर्वक दीर्घ कालतक करते रहनेका, भले ही वह एक बारमें उस कामको बहुत थोड़े समयतक करे, क्या महत्त्व होता है। इस तरह सहकारी प्रयत्नका महत्त्व उसकी समझमें आता है और उसमें आत्म-सम्मान तथा स्वावलम्बनकी भावना आती है, क्योंकि वह देखता है कि उसमें आर्थिक महत्त्वका कोई ऐसा काम करनेकी क्षमता है, जो खुद उसके लिए, उसके परिवारके लिए, उसके स्कूलके लिए और उसके गाँव, प्रान्त या राष्ट्रके लिए लाभदायक है। इस परिच्छेदमें तकलीकी बहुत-सी अन्य खूबियोंका भी उल्लेख है, जिन्हें राष्ट्रीय कताई-आन्दोलनमें दिलचस्पी रखनेवाले पाठक उस पुस्तकमें खुद ही देख सकते हैं।

प्रकाशक तकलीपर कताई करनेकी कलामें प्रवीण लोगोंको इस पुस्तककी आलोचना भेजने के लिए आमन्त्रित करता है। उसके पास जो भी सुझाव, सलाह या