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पत्र: मोतीलालको

लाभ उठाना चाहेगा तो उसपर यदि मैं क्रोध 'न' करूँ तो उस व्यक्तिको ही नुकसान पहुँचेगा। "देहान्तर प्राप्ति" का यदि बहुत विचार करो तो यह सोचकर करना; इसमें बहुत आनन्द है और यदि खेद होता है तो हमारी अशक्ति और अज्ञानके कारण ही होता है।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४५२) की माइक्रोफिल्मसे।

३४१. पत्र: नरगिस कैप्टेनको

साबरमती आश्रम
१४ अप्रैल, १९२६

पत्रके लिए आभारी हूँ। यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि पेरिन पहलेसे अच्छी और प्रसन्न थी, क्या ही अच्छा होता, अगर वह आपके साथ कुछ दिन और रह पाती। मुझे यकीन है कि उपवाससे आपके सिर-दर्दको लाभ पहुँचेगा। ऐसा सोचना भ्रम है कि दुबले-पतले लोग उपवास नहीं कर सकते।

आप मसूरी मत आइए। अगर आप दो महीनेके लिए भी कश्मीर चली जायें तो मुझे भरोसा है कि उससे आपको लाभ होगा। मसूरीमें अगर मैं बहुत ज्यादा ठहरा तो भी वहाँ मध्य जूनसे आगे मेरे ठहरने की सम्भावना नहीं है। क्या डॉ॰ बहादुरजी अब भी सूत कातते हैं? जब वे और मानिकबाई वहाँ आयें तो मेरी याद दिला दें।

आपका,

श्रीमती नरगिस कैप्टेन
पंचगनी।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४५८) की माइक्रोफिल्मसे।

३४२. पत्र: मोतीलालको

साबरमती आश्रम
बुधवार, १४ अप्रैल, १९२६

भाई मोतीलाल,

आपका पत्र और खादी-कार्यके लिए १०१ रुपये मिले। आभार मानता हूँ।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९४५३-आर) से।