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पत्र: महासुखको

अगर मैं वहाँ जाऊँगा तो साथमें एक या सम्भवतया दो साथी भी रहेंगे।

अगर आप इस निष्कर्षपर पहुँचे कि मुझे निमन्त्रण स्वीकार कर लेना चाहिए तो कृपया सूचित कीजिए कि प्रस्थान कब करना है, सम्मेलन कितने दिन चलेगा, पासपोर्टोकी व्यवस्था कौन करेगा। क्या पासपोर्टोमें कोई शर्त भी लगी रहेगी?

इस मासकी २२ तारीखतक यहाँ हूँ। २२ को मसूरी प्रस्थान कर जाऊँगा। कृपया यह बताइएगा कि निमन्त्रण भेजनेवाली यह केन्द्रीय समिति क्या है। कौन अध्यक्ष है और कौन मन्त्री? कहने की आवश्यकता नहीं कि आपके पत्रके विषयमें मैं अखबारोंको कुछ नहीं कहूँगा। सच तो यह है कि अखबारोंमें इसकी पहली चर्चा देखकर हो मैं परेशान हो उठा था। कुछ दिन तो मैं अखबारवालोंसे कतराता रहा और मैंने जो बहुत नपा-तुला वक्तव्य दिया वह भी तब दिया जब देखा कि उससे बचने का कोई रास्ता नहीं है।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्री के॰ टी॰ पॉल
कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११३४२) की फोटो-नकलसे।

३३८. पत्र: महासुखको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, १३ अप्रैल, १९२६

भाईश्री ५ महासुख,

आपका पत्र मिला। आप अपनी शंकाएँ प्रगट करते हैं, इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। लेकिन जिस व्यक्तिको हम पत्र लिखें उसके उत्तरपर हमें क्रोध नहीं करना चाहिए और न अपने मनमें उसकी प्रामाणिकताके विषयमें शंका ही लानी चाहिए या फिर जिनके वचनोंके बारेमें हमें शंका हो उन्हें हम कुछ भी न लिखें। आपने किस बातसे यह जाना कि मैंने आपको जो-कुछ लिखा वह शब्दजाल ही था? आपको यह कैसे मालूम हुआ कि स्वराज्य आदि आन्दोलनको मैं खोजने गया था? मैं आपको फिर बताता हूँ कि मैंने आपको जो उत्तर दिया है सो विचारपूर्वक ही दिया और मैं उसे अक्षरशः सही मानता हूँ और मैं आपको मेरे वचनको सही माननेकी सलाह देता हूँ।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८८४) को माइक्रोफिल्मसे।