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पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

लेकिन यदि निश्चय न कर सको तो कमसे-कम धोखा मत देना। भगवान तुम्हारी सहायता करे!

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]

भाई नाजुकलाल, इसमें सब-कुछ आ जाता है। समय बीत रहा है। इससे तुम्हें अलगसे नहीं लिखता।

बापू

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १२१२५) की फोटो-नकलसे।

३३६. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

१२ अप्रैल, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

असमके बारेमें आपका पत्र मिला। देखता हूँ, आपमें और शंकरलालमें सहमति नहीं है। राजेन्द्रबाबू की नियुक्तिका सुझाव मैंने दिया था। मुझे यह मालूम था कि असमके कार्यकर्त्ताओंके मनमें आपके खिलाफ पूर्वग्रह हैं। इस हालतमें, जबतक कोई जिम्मेदार व्यक्ति वहाँके कामका दायित्व अपने सिर न ले तबतक वहाँ कुछ भी पैसा लगाया नहीं जा सकता था। इसलिए मैंने सुझाव दिया कि राजेन्द्रबाबू वहाँकी स्थितिकी जाँच करके अपनी रिपोर्ट दें। पिछले दिनकी बातचीतके बारेमें मुझे कुछ मालूम नहीं था। शंकरलालसे मिलनेपर मैं पूछताछ करूँगा। अभी तो यह पत्र आपको सिर्फ यह सूचित करनेके लिए लिख रहा हूँ कि राजेन्द्रबाबूकी नियुक्तिमें मेरा हाथ था। और इसे लिखनेका उद्देश्य यह है कि इस तथ्यको जान लेनेके बाद आप शंकरलालके बारेमें अपना खयाल जितना बदल सकते हों, बदल लें। मुझे इस बातकी बड़ी फिक्र है कि कौंसिल एक व्यक्तिकी तरह काम करे। शंकरलालकी मर्यादाओंसे मैं वाकिफ हूँ। वह जल्दबाज आदमी है, भावनामें बह जानेवाला और घबरानेवाला भी। वह बातोंको भूल भी जाता है। लेकिन उसका हृदय कुन्दन जैसा है। वह अच्छा संगठनकर्त्ता भी है। खादीसे उसे प्रेम है। तो हमें एक-दूसरेका बोझ तो उठाना ही है। यह पत्र मैं शुद्धि सप्ताहमें सोमवारको लिख रहा हूँ। मैं चाहता हूँ, आप पूर्ण बनें, सर्वथा दोषरहित बनें। लेकिन हम [ किसीके इशारा-भर देनेसे ] यन्त्रकी तरह तो कुछ भी नहीं कर सकते सो इस पत्रको, जिस लायक यह हो, उतना ही महत्त्व दीजिए।

आपका,
बापू

अंग्रेजी पत्र ( जी॰ एन॰ १५५८ ) की फोटो-नकलसे।