पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/३३१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



३३३. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

साबरमती आश्रम
रविवार, ११ अप्रैल, १९२६

भाई घनश्यामदासजी,

आपका पत्र मिला। जिससे बहुतसी बातें स्पष्ट हो जाती हैं। अखबारोंसे मैं झगड़ेका बयान पढ़ लेता था। मैंने दिलमें निश्चय कर लिया है कि दोनोंको लड़नेसे कमसे-कम मैं तो रोक नहीं सकता हूँ। इसलिए अब कलकत्तेके झगड़ेका कोई असर मेरे पर नहीं हुआ। मैंने यह भी तो कबसे कह दिया है कि यदि हिन्दु लड़ना ही चाहते हैं तो निर्दयताको दोष न समझें, परन्तु गुण समझकर उसकी वृद्धि करनी होगी। और यही बात कलकत्तेमें हो गई है ऐसा प्रतीत होता है। आपने दोनोंको निष्पक्षपात होकर बचायें और समस्त मारवाड़ियोंने तीनसो करीब मुसलमानोंकी प्राणरक्षा की, यह बात हिन्दु जातिके लिये गौरवकी है।

आपने खद्दरका व्रत ले लिया इससे आपको और आग्रह करनेवालोंको धन्यवाद देता हूँ। इस व्रतका फल आपको तो मिलेगा ही। परन्तु जनताको भी इसका फल अवश्य मिलेगा। मैं मसूरी २२ तारीखको जाऊंगा। मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा है। सत्याग्रह सप्ताह होनेके कारण मैं आजकल दो घंटा कातता हूं और आश्रममें पांच अखंड चरखे चलते हैं। आपने टाइटल लेनेका इनकार किया। मुझको बहुत अच्छा लगा। इनकार करनेके लिये न गवर्नमेंटको दुश्मन समझनेकी आवश्यकता है, न टाइटलको बूरे समझनेकी है। अगरचे मैं तो टाइटलको अवश्य बूरा समझता हूं, हमारी इस हालत में।

आपका,
मोहनदास

मूल पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६१२४) से।

सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला