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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि हमें सदाके लिए गुलाम बने रहनेको तैयार रहना चाहिए। यदि हम अपने देशके लिए सुख और आराम तथा और भी बहुत-कुछ त्यागनेसे घबराते हैं तो भविष्यमें हमें कितने भी सुधार हासिल हों, सब व्यर्थ सिद्ध होंगे।

श्रीमती सरोजिनी नायडू


ताजमहल होटल


बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४५०) की फोटो-नकलसे।

३३२. पत्र: गोपालकृष्ण देवधरको

साबरमती आश्रम
११ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

मनोरमासे मैंने बातचीत की है। वह आपको पत्र लिख रही है। वह टूटी-फूटी गुजराती और हिन्दुस्तानी बोलती है और उससे जो-कुछ मैं समझ पाया हूँ वह यह है कि वह पूना रवाना होनेके पहले यह पक्का कर लेना चाहती है कि सेवासदनमें उसे फिरसे दाखिला मिल जायेगा। ऐसा लगता था कि वह आरोप उसे अच्छा नहीं लगा कि पहले वह स्थिरचित्त नहीं थी।

यहाँ फिलहाल तो वह बुनाई सीख रही है। वह अपने चार घंटे इसमें लगाती है। यदि वह इसी तरह साल-भर बुनाई करती रही और यह काम उसे पसन्द आया तो वह अपनी जरूरत-भर बड़ी आसानी से कमा सकेगी। परन्तु यदि उसने जमकर यह काम नहीं किया तो बुनाई सीख नहीं पायेगी, क्योंकि इसमें सतत प्रयास और काफी मेहनत की जरूरत पड़ती है।

आपका,

श्रीयुत गोपालकृष्ण देवधर
बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४५१) को माइक्रोफिल्मसे।