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३२९. पत्र: ए॰ इर्बीको

साबरमती आश्रम
११ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

पत्रके लिए धन्यवाद। मैं नहीं समझता मुझे फिनलैंड जाना पड़ेगा। लेकिन अगर गया और अगर मुझे लैटवियासे होकर गुजरना हुआ तो मैं निश्चय ही आपके पिताजीसे मिलना चाहूँगा। आप अखबार देखती रहें; अगर मैं जाता हूँ, तब तो आप मुझे जो पत्र जरूरी समझेंगी वह शायद भेज ही देंगी।

हृदयसे आपका,

श्रीमती ए॰ इर्बी


बुनाई स्कूल
सी॰ एस॰ एम॰


मायावरम्

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४४८) की फोटो-नकलसे।

३३०. पत्र: बगलाप्रसन्न गुहारायको

साबरमती आश्रम
११ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। कृपया यह बतायें कि प्रकाश बाबूको मंत्रीपदसे त्यागपत्र देनेके लिए क्यों मजबूर किया गया और वे अब कहाँ हैं।

तिपेरा खादीसे सम्बन्धित आपकी कठिनाइयोंको मैं समझता हूँ। इस मुसीबतसे छुटकारा पानेका एकमात्र उपाय यह है कि आप लोग, स्वयं बुनकर बन जायें और मध्यम वर्गीय लोगोंको मुफ्त कताई करनेके लिए तैयार करें। इस प्रकार जो सूत हमें मिलता है उसे खरीदसे प्राप्त होनेवाले सूतमें मिलाया जा सकता है। तब आप भी तिपेरा खादीके समान ही अपनी खादी भी सस्ती बेच सकेंगे। मैं यह मानता हूँ कि ऐसा कहना आसान है किन्तु करना कठिन है, पर इन कठिन समस्याओंके समाधानका कोई आसान तरीका है भी तो नहीं। आप ऐसी जमीनका भी पता लगाने की कोशिश करें, जहाँ रुई आसानीसे उगाई जा सके।

और अन्तमें, खादीका कार्य उस जिलेमें नहीं चल सकता जहाँ गरीब लोगोंके पास फालतू समय न हो। खादीकी सारी योजना ही इस मान्यतापर आधारित है