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३२७. पत्र: शौकत अलीको

साबरमती आश्रम
११ अप्रैल, १९२६

प्यारे दोस्त और भाई,

ऐसा लगता है बिना किसी चिट्ठी-पत्रीके हमारे मनकी बातें एक-दूसरेतक पहुँच गई हैं। मैं तो इतना कम और इतनी बेपरवाहीसे काता सूत भेजनेके लिए आपकी खबर लेनेके खयालसे आपके नाम एक चिट्ठी लिखानेकी सोच रहा था। मगर आपने पहले ही चिट्ठी लिखकर उन सभी बातोंका जवाब दे दिया है, जो मैं अपनी चिट्ठीमें लिखनेवाला था। इस तरह आपने मेरे उलहानेमें तल्खीकी गुंजाइश ही नहीं रहने दी।

मुहम्मद अलीकी परेशानियोंके बारेमें मैंने सुना। मेरा दिल उनके साथ है, लेकिन बुद्धिको उनका रवैया पसन्द नहीं। वे बहुत ज्यादा लापरवाह हैं और कोई काम ढंगसे न करनेके मामलेमें तो वे शायद सभी सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंसे बाजी मार ले जाते हैं।

हर रोज चुपचाप एक घंटा चरखेपर जरूर लगायें, और उस समय आप अपना सारा ध्यान उसीपर दें। इसकी उपेक्षा करनेसे काम नहीं चलेगा। अभी कुछ ही दिन पहले एक आदमीने मुझे इस बातके लिए उलाहना देते हुए पत्र लिखा था कि आपने और मुहम्मद अलीने तो कुछ भी सूत नहीं भेजा है। मुहम्मद अलीको [ इसके बारेमें ] मैंने कोई पन्द्रह दिन पहले पत्र लिखा था।

१६ को आपसे मिलनेकी उम्मीद रखूँगा। आशा है, उस समय आपको स्वस्थ और प्रसन्न देख पाऊँगा।

हालमें हकीम साहबका एक निराशा-भरा पत्र मिला था। दिल्ली जानेपर आप उन्हें हिम्मत दिलाइए। शुएब कहाँ है? आप सहित दफ्तरके सभी लोगोंको मेरा प्यार।

आपका,

मौलाना शौकत अली


मार्फत——केन्द्रीय खिलाफत समिति
सुलतान मैंशन डोंगरी


बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४४६) की फोटो-नकलसे।