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३२५. पत्र: एस नागसुन्दरम्को[१]

साबरमती आश्रम
११ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपने जिस विषयका उल्लेख किया, उसपर 'यंग इंडिया' में लिखना मेरे लिए ठीक नहीं होगा। १९२१ की घटनाके बारेमें मुझे जो-कुछ कहना था सब कह चुका हूँ। मैं कभी भी समझौता-विरोधी मनःस्थितिमें नहीं होता। वाइसराय महोदयने कभी भी कोई ऐसा प्रस्ताव सामने नहीं रखा जो किसी आत्म-सम्मानी व्यक्तिको स्वीकार हो सकता था। जब मैंने अली बन्धुओंको "सफाई"[२] के नामसे विख्यात उस कागजपर हस्ताक्षर करनेकी सलाह दी तब वास्तवमें मैं कमजोरी दिखानेकी स्थितिके अत्यन्त निकट पहुँच गया था। लेकिन, मुझे उसका दुःख नहीं है। उस "सफाई" से अली बन्धुओंको और राष्ट्रको बड़ा लाभ हुआ। और जब उनपर मुकदमा चला तब वह चीज सरकारके लिए जितनी शर्मनाक थी, दोनों भाइयोंके लिए उतनी ही सम्मानजनक थी।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस॰ नागसुन्दरम्


पहली मंजिल, लक्ष्मीनिवास बिल्डिंग


किंग्स सर्किल के पास, माटुंगा (बम्बई)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४४४) की माइक्रोफिल्मसे।

अगले कदमपर विचार करनेके लिए गोलमेज कांफ्रेंसका प्रस्ताव रखा और यद्यपि स्वर्गीय चित्तरंजन दासने प्रस्ताव स्वीकार कर लेनेकी सलाह दी, श्री गांधीने प्रस्तावको अस्वीकार कर दिया और इस तरह एक बहुत बड़ा मौका हाथसे निकल गया। लगता है, इससे लॉर्ड रीडिंगको विश्वास हो गया कि समझौता और बातचीतका तरीका सफल होनेवाला नहीं है, और युवराजके यहाँसे प्रस्थान करते ही महात्माजीपर मुकदमा चलाया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया।"

  1. यह एस॰ नागसुन्दरम् के उस पत्रके उत्तरमें लिखा गया था, जिसमें उन्होंने गांधीजीसे ३ अप्रैलके इंडियन सोशल रिफॉर्मरमें प्रकाशित "द चेंज ऑफ वाइसराय" शीर्षक लेखका उत्तर देनेका अनुरोध किया था। लेखका पहला अनुच्छेद इस प्रकार था: "आज़ लॉर्ड रीडिंग वाइसराय पदका कार्य-भार लॉर्ड इर्विनको सौंप रहे हैं। आज देशके राजनीतिक वातावरणमें पूरी शान्ति है, जब कि जिस समय लॉर्ड रीडिंग आये थे, उस समय बहुत अशान्ति छाई हुई थी। असहयोग आन्दोलन तेजीसे अपने चरम-बिन्दुकी ओर बढ़ता जा रहा था। वाइसराय पदका कार्य-भार सँभालनेके बाद कई महीनेतक लॉर्ड रीडिंग महात्मा गांधीसे समझौता करनेकी कोशिश करते रहे, लेकिन गांधीजी समझौता-विरोधी मनःस्थितिमें थे। अली बन्धुओं पर मुकदमा चलनेके बाद तो समझौता असम्भव ही हो गया। कुछ महोनेमें युवराज इस देशकी यात्रा करनेवाले थे, और महाविभवकी यह यात्रा शान्तिपूर्वक सम्पन्न हो जाये, इस उद्देश्यसे कमसे-कम एक अस्थायी समझौता भी करनेके लिए वाइसराय महोदयने एड़ी-चोटीका जोर लगा दिया। उन्होंने राजनीतिक प्रगतिके अगले कदमपर विचार करनेके लिए गोलमेज कांफ्रेंसका प्रस्ताव रखा और यद्यपि स्वर्गीय चित्तरंजन दासने प्रस्ताव स्वीकार कर लेनेकी सलाह दी, श्री गांधीने प्रस्तावको अस्वीकार कर दिया और इस तरह एक बहुत बड़ा मौका हाथसे निकल गया। लगता है, इससे लॉर्ड रीडिंगको विश्वास हो गया कि समझौता और बातचीतका तरीका सफल होनेवाला नहीं है, और युवराजके यहाँसे प्रस्थान करते ही महात्माजीपर मुकदमा चलाया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया।"
  2. देखिए खण्ड २०, पृष्ठ ९२।