पालन नहीं करते। यह कोई कम दुःखकी बात नहीं है। हमारे ऐसे दोषोंके कारण ही हमारी धर्म-भावना शिथिल हो गई है और हमारा देश दास हो गया है।
नवजीवन, ११-४-१९२६
३२२. गुरुकुल और खादी
जमनालालजीकी भेजी हुई सूचीमें ४०[२] नाम हैं। सूचीके सब नाम तो यहाँ नहीं दिये जाते परन्तु उसका विश्लेषण अवश्य ध्यान देने योग्य है। उसमें प्रथम सदस्य तो गुरुकुलके आचार्य हैं, पाँच उपाध्याय हैं, और सात नये स्नातक हैं जिन्हें बेदालंकार या विद्यालंकारकी उपाधि दी गई है। फिर, पाँच चतुर्दश श्रेणीके, सात त्रयोदश श्रेणीके, चार द्वादश श्रेणीके और पाँच एकादश श्रेणीके ब्रह्मचारी हैं। गुरुकुलमें दो बहनें सदस्या बनी हैं। और दिल्लीमें ये तीन: श्रीमती विद्यावती सेठी (बी॰ ए॰), आचार्या, कन्या गुरुकुल और दूसरी दो अध्यापिकाएँ श्रीमती सीतादेवी और श्रीमती चन्द्रावती।
पंजाबके खादी निरीक्षक लिखते हैं:[३]
मैं इन संस्थाओंको बधाई देता हूँ।
नवजीवन, ११-४-१९२६
३२३. निरामिषाहार अर्थात् अन्नाहार
मैंने 'नवजीवन' के पाठकोंसे प्रार्थना की है कि वे निरामिषाहारके लिए इससे कोई सरल शब्द सुझायें। 'निरामिषाहार' शब्द कुछ पाठकोंको पसन्द नहीं आया है। इसके बजाय 'निमांसाहार' या 'अमांसाहार' शब्द सुझाये गये हैं। ये दोनों शब्द भी अच्छे नहीं लगते हैं। जिन्हें मांस जन्मसे ही त्याज्य है, उन्हें मांस शब्द अच्छा नहीं लगता। इसलिए उनके लिए कोई अपरिचित शब्द ही उपयुक्त रहेगा। जिस मनुष्यको किसी वस्तुसे घृणा होती है, उसे उसका नाम लेनेमें भी झिझक होती है। मांस शब्द मांस न खानेवालोंके लिए ऐसा ही है; वे इसीलिए उसे 'पर-
- ↑ पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। जमनालालजीने लिखा था कि गुरुकुलवासी खादीके कार्यमें बहुत रुचि ले रहे हैं।
- ↑ चरखा संघके नये बने सदस्योंकी सूचीमें।
- ↑ यहाँ इसका अनुवाद नहीं दिया गया है। पत्र-लेखकने लिखा था कि गुरुकुल मुलतान (छावनी) में और एक अन्य स्थानमें आर्य समाज द्वारा संचालित एक अनाथालयमें कपड़ेकी जरूरत पूरी करनेके लिए खादी खरीदी जाने लगी है।