पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/३२०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३२०. पत्र: गुलाबदासको

साबरमती आश्रम
शनिवार चैत्र वदी १ [३][१] [१० अप्रैल, १९२६][२]



भाई गुलाबदास,

तुम्हारा पत्र मिला। ब्रह्मचर्य का पालन तो सत्संगसे, अच्छी पुस्तकें पढ़ने और रानामका जप करनेसे ही हो सकता है। शरीर अथवा मन एक क्षणके लिए भी निठल्ला न रहे, ऐसी योजना करनी चाहिए। यदि तुम चरखेका आग्रह रखना चाहते हो तो अवश्य रखो। पिताजीको नम्रतासे समझाया जा सकता है। सरकारके साथ जिसका कोई सम्बन्ध नहीं है, ऐसा एक आयुर्वेदिक विद्यालय कलकत्तामें है लेकिन उसमें खर्च ज्यादा आता है। उसी तरह दिल्ली में तिबिया कॉलेज है, वहाँ भी खर्च इतना ही आता है। गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८६९) की फोटो-नकलसे।

३२१. आशाकी किरण

भाई डाह्याभाई धोलकासे लिखते हैं:[३]

यह उदाहरण अवश्य उल्लेखनीय है। जो लोग गरीब नहीं है वे भी शौकसे अथवा देशप्रेमसे प्रेरित होकर चरखा चलाते हैं तो यह बात स्वागत करने योग्य है। मुझे उम्मीद है कि भाई डाह्याभाई चरखेके प्रति अपना श्रद्धाभाव खोयेंगे नहीं और उसके प्रचार कार्यमें प्रगति करते रहेंगे। मुझे यह भी उम्मीद है कि रामपुर गाँवके लोग इस कार्यका आरम्भ करनेके बाद अब उसे बराबर जारी रखेंगे तथा आलोचकों को अपने विषयमें ऐसा कहनेका अवसर नहीं देंगे कि उन्होंने आरम्भ करनेमें तो शूरता दिखाई किन्तु बादमें सुस्त साबित हुए। मुझे इतनी चेतावनी इसलिए देनी पड़ती है कि डाह्याभाईने जिस पत्रमें रामपुरकी जागृतिका उल्लेख किया है उसीमें वे यह भी लिखते हैं कि "एक भाईने अपनी इच्छासे सूत कातनेकी प्रतिज्ञा ली, उन्हें सूत कातना आता भी है और उसका अभ्यास है; यह सब होनेके बावजूद उन्होंने कातना आलस्यवश छोड़ दिया है।" हिन्दुस्तानमें ऐसे उदाहरण हर जगह मिलते हैं। लोग प्रतिज्ञा लेते समय रुककर नहीं सोचते और प्रतिज्ञा लेनेके बाद उसका

  1. देखिए पिछले शीर्षककी पा॰ टि॰।
  2. गुलाबदासके उस पत्रपर, जिसके उत्तरमें यह लिखा गया है, ६-४-१९२६ की तारीख है।
  3. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें पत्र-लेखकने लिखा था कि रामपुरके किसानोंने खादीका काम अपना लिया है और वे उसे उत्साहसे कर रहे हैं।