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पत्र: जगजीवनदासको

  जानकारी भेजनेके लिए पत्र लिखा दिया था क्योंकि वे बहुत कागज पत्र देखनेकी जहमत उठाये बगैर वह जानकारी मुझे दे सकते थे। मैंने पत्र आपके नाम इसलिए लिखा था क्योंकि निरंजन बाबू उस समय आपके साथ थे और मैंने यह भी सोचा था कि जब पत्र आपको मिलेगा उस वक्त वे आपके साथ ही होंगे। अथवा यदि वे चले भी गये होंगे तो आप इस पत्रको उनके पास भेज देंगे। आपको किन-किन चीजोंकी और किस हदतक कितनी देखभाल करनी पड़ेगी और कितनी नहीं, यह मुझे बिलकुल मालूम नहीं। मेरा खयाल है कि आपको सभी बंडल प्राप्त हो गये होंगे।

निरंजन बाबूने तार भेजा है कि वे मेरे पास सारी जानकारी भेज रहे हैं। अतः मैं उनके पत्रको प्रतीक्षा करूँगा। इस बीच क्या मैं यह मानूँ कि यदि हम उत्कलको २५० रु० प्रतिमास सितम्बरतक देते रहें तो वह आत्म-निर्भर हो जायेगा। मैंने आपके पत्रसे यही अर्थ निकाला है। और इसका अर्थ यदि ऐसा है तो यह बहुत आसान बात है और यदि इतनेसे ही उत्कल आत्म-निर्भर हो सका तो यह निश्चय ही आश्चर्यजनक रूपसे अच्छा काम होगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सतीशचन्द्र दासगुप्त
कलकत्ता।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४४३) की माइक्रोफिल्मसे।

३१९. पत्र: जगजीवनदासको

साबरमती आश्रम
शनिवार, चैत्र बदी १ [३][१] [१० अप्रैल, १९२६]

भाई श्री ५ जगजीवनदास,

आप चूँकि भ्रमणपर ही रहनेवाले हैं और कुछ अर्सेंतक अमरेली नहीं पहुँचेंगे इसलिए मैंने जान-बूझकर देर की है। आज आपके द्वारा दिये गये पतेपर पाँच सौ रुपयेकी हुंडी भेज रहा हूँ।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८६५) की फोटो-नकलसे।

  1. साधन-सूत्रमें चैत्र बदी १२ है किन्तु शनिवार चैत्र बदी १३ को था।