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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिंसाका जो दुःखद व्यापार चलता रहता है, उसमें से उसे अहिंसाका पाठ सीखना है, इसलिए यदि मनुष्य अपनी गरिमा और मानव-जीवनके उद्देश्यको चरितार्थ करना चाहता है तो उसे इस विनाशके व्यापारसे मुँह मोड़ लेना चाहिए और अपनेसे दुर्बल प्राणियोंको मारने और खानेसे इनकार कर देना चाहिए। इस चीजको वह अपने लिए मात्र आदर्शके ही रूपमें स्वीकार कर सकता है और फिर उसकी सिद्धिके लिए दिन-प्रतिदिन प्रयत्न कर सकता है। पूर्ण सफलता तो तभी सम्भव है जब वह मोक्षको—— अर्थात् उस अवस्थाको प्राप्त हो जाये जिसमें आत्मा शरीरके बन्धनोंसे मुक्त बनी रहती है।

हृदयसे आपका,

श्री वी॰ एन॰ एस॰ चारी


७, हाई रोड


एग्मोर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४३८) की माइक्रोफिल्मसे।

३१४. पत्र: एस॰ गोविन्दस्वामी अय्यरको

साबरमती आश्रम
१० अप्रैल, १९२६

प्रिय भाई,

आपका पत्र मिला। आपने जो जानकारी दी है, वह अगर सच हो तो मुझे बहुत दुःख होगा। आपने जिन सज्जनोंके नाम मुझे बताये हैं, उनके पते मैं नहीं जानता। मेरा मतलब श्री के॰ एस॰ नम्बूद्रीपाद और अगर श्री बेलु पिल्लेसे है——अगर श्री बेलु पिल्लेने भी वैसे भाषण दिये हों जैसे भाषण देनेकी बात श्री नम्बूद्रीपादके विषयमें कही जाती है। अगर आप मुझे उनके पते भेज दें तो निश्चय हो मैं पूछताछ करूँगा।

आपने अपना नाम प्रकट न करने को कहा है। मैं इसका खयाल रखूँगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस॰ गोविन्दस्वामी अय्यर, बी॰ ए॰ बी॰ एल॰


गोपी विलास
पुलीमूड


त्रिवेन्द्रम्

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४३९) की माइक्रोफिल्मसे।