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३०९. पत्र: नागजीभाईको

आश्रम
८ अप्रैल, १९२६

भाई नागजीभाई,

आपका पत्र मिला। यदि आप विश्वामित्र, वसिष्ठ आदिको ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं तो आपके किये हुए प्रश्नोंका उत्तर देना मुश्किल है। लेकिन यदि यह समझनेमें आपको दिक्कत न हो कि 'रामायण' एक धार्मिक ग्रन्थ है और विश्वामित्र तथा परशुराम आदिकी कहानियाँ रूपक है तो आप स्वयं ही उनका अर्थ लगा सकेंगे।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९८९९) की माइक्रोफिल्म से।

३१०. पत्र: हरनारायणको

[ ८ अप्रैल, १९२६ या उसके पश्चात् ][१]

आपका पत्र मिला। जिस मित्रके बारेमें आप लिखते हैं यदि वह सचमुच बचना चाहता है तो जिस स्थानमें वह है उस स्थानका उसे त्याग करना चाहिए और ऐसे धन्धेकी तलाश करनी चाहिए जिसमें स्त्रियोंके साथ उसका सम्पर्क कमसे-कम अथवा बिलकुल भी न हो। इसके सिवा, उसे ऐसा ही धन्धा चुनना चाहिए जिसमें उसका शरीर सारा दिन व्यस्त रहे एवं एकान्त तो मिले ही नहीं।

दूसरे भाईके बारेमें तो——उनमें अर्थात् पति-पत्नी दोनोंमें केवल हिम्मतकी ही आवश्यकता है। जब भी कोई उनके लिए बाँझ शब्दका प्रयोग करें, उन्हें उसे भूषण मानकर उसका स्वागत करना चाहिए। जिसे व्रतका पालन करना है, और ब्रह्मका साक्षात्कार करना है वह जगतकी निन्दासे कभी नहीं डरता।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १२०९५) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. यह पत्र जिस पत्रके उत्तरमें लिखा गया है, उसपर लेखनकी तिथि चैत्र बदी ११, ८२ दी गई है।