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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दरअसल मैं उसको आश्रममें लेनेके लिए तैयार भी नहीं था—और किसी कारणसे नहीं तो इस कारणसे कि यहाँ आजकल बहुत ज्यादा लोग रह रहे हैं और आप जानते ही है कि युवतियोंकी देख-रेख करना बहुत कठिन है। लेकिन, वह आग्रह करती रही। निदान मैंने उसे श्रीमती गांधीके साथ रख दिया। कुमारी रहकर सेवाका जीवन व्यतीत करनेकी उसकी आकांक्षा मुझे बहुत रुची।

उससे बात करके आपको फिर पत्र लिखूँगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत गोपालकृष्ण देवधर
बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४३४) की माइक्रोफिल्मसे।

३०८. आमुख

साबरमती आश्रम
८ अप्रैल, १९२६

हेमेन्द्र बाबूने मुझसे अपनी 'देशबन्धुकी जीवनी' पुस्तकका आमुख लिखनेको कहा है। दुर्भाग्यवश मैं बंगला नहीं जानता। मुझे उम्मीद थी कि इसके कुछ आवश्यक अंश मैं किसीसे पढ़वाकर सुन लूँगा, पर इसके लिए समय निकाल पानेमें मैं असमर्थ रहा। हेमेन्द्र बाबू देशबन्धुके भक्तोंमें से हैं। दिवंगत नेताके प्रति उनके मनमें कितना सम्मान तथा प्रेम था, यह मैं जानता हूँ। इसलिए मुझे इस बातमें कोई सन्देह नहीं है कि उन्होंने देशबन्धुके बारेमें जो-कुछ लिखा है, वह पठनीय होगा। देशबन्धुके समान नेक और महान् पुरुषकी स्मृतिको समय कभी नहीं मिटा सकता। जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा, उनकी स्मृति और भी पुनीत होती जायेगी। आज देश कठिन परीक्षाकी घड़ीसे गुजर रहा है और इस समय ऐसा कोई भारतीय नहीं है जो उनके देहावसानसे उत्पन्न रिक्तताको महसूस न कर रहा हो। मेरी कामना है कि देशबन्धु जिस देशके लिए जिये और मरे, उसके प्रति हमें हमारे कर्त्तव्यका भान करानेमें हेमेन्द्र बाबूकी यह पुस्तक सहायक हो।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४३६) की फोटो-नकलसे।