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पत्र: गोपालकृष्ण देवधरको

  ही नरम शब्दोंमें 'मैंचेस्टर गार्जियन' ने कहा है, पूर्ण मद्यनिषेधके खिलाफ जितना अमेरिका या इंग्लैंडमें कहा जा सकता है, उसकी अपेक्षा भारतमें उसके विरोधमें कहनेको बहुत कम है, क्योंकि उक्त दोनों देशोंके तो सम्भ्रान्त लोग भी थोड़ी-बहुत पीनेमें कोई बुराई या नुकसान नहीं देखते।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-४-१९२६

३०६. सन्देश: वकीलोंके सम्मेलनको[१]

साबरमती आश्रम
८ अप्रैल, १९२६

अध्यक्ष


स्वागत समिति
चतुर्थ मैसूर वकील-सम्मेलन,


तुमकुर

आशा है, सम्मेलनमें शामिल होनेवाले वकील चरखेके सन्देशको समझेंगे और खादीको अपनायेंगे तथा कुछ समय निष्ठापूर्वक कताईके काममें लगाकर, गरीबोंसे उन्हें जो लाभ होता है, उसके बदले उन्हें भी कुछ देंगे और अपनी आयका एक हिस्सा खादीको लोकप्रिय बनानेके उद्देश्यसे स्थापित देशबन्धु स्मारक कोषको देंगे।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४३५) को माइक्रोफिल्मसे।

३०७. पत्र: गोपालकृष्ण देवधरको

साबरमती आश्रम
८ अप्रैल, १९२६

प्रिय देवधर,

आपका पत्र मिला। मनोरमाने पिछली रात मुझसे आपके पत्रकी चर्चा की और मैंने उसे न केवल सेवासदन जानेकी छूट दी बल्कि यह भी कहा कि चूँकि वह संस्था विशेष रूपसे स्त्रियोंके लिए बनाई गई है, इसलिए वह शायद उसकी जरूरतोंको देखते हुए आश्रमकी बनिस्बत कहीं ज्यादा उपयुक्त होगी। उसने मुझसे कहा कि एक-दो दिनमें अन्तिम निर्णय करके वह मुझे सूचित करेगी। आपका पत्र उसे देकर उससे फिर बातें करूँगा। मुझे मालूम था कि वह सेवासदनमें पहले भी रह चुकी है।

  1. यह सन्देश तुमकुरमें आयोजित वकीलोंके सम्मेलनको भेजा गया था।