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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दौरान १२,५०० मतदाताओंमें से एक भी मत देनेको नहीं आया। फिर जब दूसरी तिथि निश्चित की गई तो केवल चार व्यक्तियोंने मतदान किया। शेष चार स्थानोंमें से केवल छोटे-से तोहना शहरमें १०५२ मतदाताओंमें से ८०२ ने पूर्ण मध-निषेधके पक्षमें मत दिया।

इस सबके आधारपर श्री किंगने कहा कि पंजाबमें लोग पूर्ण मद्यनिषेध नहीं चाहते। ऐसा निष्कर्ष निकालना तो उसी व्यक्तिको शोभा देता जो भारत और भारतकी परिस्थितियों से अपरिचित होता। दुर्भाग्यवश भारतमें हालत यह है कि लोग ऐसी चीजों के प्रति भी उदासीन रहते हैं, जिनका कि समाजके रूपमें उनसे सम्बन्ध होता है। जनमत-संग्रहके लिए अपनाये गये तरीके उनके लिए नये हैं। मतदातागण शायद इस विषयमें कुछ नहीं चाहते थे कि पूर्ण मद्य-निषेधके लिए जनमत-संग्रह किया जा रहा है। जो लोग भारतको जानते हैं वे यह भी जानते हैं कि भारतमें रहनेवाले लोगोंमें से बहुत ज्यादा लोग मद्यपान नहीं करते और मद्यपान इस्लाम और हिन्दू-धर्मके विरुद्ध है। श्री किंग भी इस बातको अवश्य जानते होंगे। इसलिए उन्होंने जिस तथाकथित विफलताका उल्लेख किया है, उससे यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि पंजाब पूर्ण मद्यनिषेधके विरुद्ध है, बल्कि यह समझना चाहिए कि चूँकि पंजाबी लोग एक वर्गके रूपमें शराब आदिसे बिलकुल दूर रहते हैं, इसलिए वे उन लोगोंके लिए कोई परेशानी अनुभव नहीं करते जो इस मद्यपानके अभिशापके शिकार बनकर अपने- आपको बरबाद कर रहे हैं। वे यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि नगरपालिकाओंके आयुक्त और स्थानिक निकायोंके सदस्य सामाजिक दृष्टिकोणसे इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मामलेमें मतदाताओंके प्रति अपने कर्त्तव्योंकी अपराधपूर्ण उपेक्षा करते रहे हैं। लेकिन, इन तथ्योंके आधारपर ऐसा कहना कि पंजाब पूर्ण मद्य-निषेधके खिलाफ है, यहाँकी परिस्थितियोंसे नावाकिफ लोगों या अज्ञानी लोगोंकी आँखोंमें धूल झोंकना है। मगर दुर्भाग्यवश अधिकारियोंका तरीका ही यही है। वस्तुस्थितिको निष्पक्ष और जनताके दृष्टिकोणसे देखनके बजाय, सरकार जिन बातोंको लेकर चलती है या वह किसी भी कीमतपर जिन तरीकोंका बचाव करना चाहती है, अधिकारीगण अपने-आपको उनका पक्ष-पोषक बना लेते हैं। यह तो एक सर्वविदित तथ्य है कि हिन्दू लोग गाय और उसकी सन्ततिकी हत्याके खिलाफ हैं। अब मान लीजिए कि इस विषयपर उसी तरह जनमत-संग्रह किया जाता है जिस तरह पंजाबमें शराबके सम्बन्धमें किया गया और उसमें करोड़ों हिन्दू अपने मत नहीं दे पाते हैं तो इसके आधारपर क्या ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो भारतकी परिस्थितियोंसे वाकिफ है, यह कहेगा कि हिन्दू ऐसे बूचड़खाने चाहते हैं जहाँ पवित्र गायोंकी हत्या की जाये? सचाई यह है कि यहाँके लोगोंमें अभी वह जागरूकता नहीं आ पाई है जो मनुष्यको सामाजिक अन्यायोंके प्रति अधीर बना देती है। इसमें सन्देह नहीं कि यह स्थिति बहुत दुःखद है, मगर इसमें धीरे-धीरे लेकिन यह तो दुष्टतापूर्ण आचरण हुआ कि ऐसे तथ्योंको दबा दिया जाये जिनके आधारपर ऐसा निष्कर्ष निकलता हो जो उन तथ्योंके अभावमें दूसरे प्रकारके तथ्योंसे निकाले गये निष्कर्षके बिलकुल विपरीत हो। जैसा कि बड़े