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३०४. लेखाचित्रकी आवश्यकता

एक सज्जनने इस आशयका पत्र लिखा है कि पाठकोंको तथ्योंका बोध करानेके लिए आँकड़े देनेके बजाय खादीके उत्पादन और बिक्रीके उतार-चढ़ाव दिखानेवाले लेखाचित्र (चार्ट) देने चाहिए। वे उन लोगोंकी दुःशंकाओंको माननेके लिए तैयार नहीं हैं जो कहते हैं कि खादी तो दम तोड़ रही है किन्तु साथ ही वे कहते हैं कि जिन लोगोंने अखिल भारतीय चरखा संघकी वार्षिक रिपोर्ट पढ़ी है वे यद्यपि ऐसी दुःशंकाओंका खण्डन कर सकते हैं, लेकिन रिपोर्टको पढ़नेका धैर्य तो कुछ ही लोगोंमें है। वे कहते हैं:

लोग सोचते हैं कि जितने अधिक लोग खादी टोपी पहनेगे, खादीका उत्पादन और बिक्री उतनी ही ज्यादा होगी। लेकिन, यह बात बराबर सच ही नहीं होती। खादी टोपी पहननेवाले सभी लोग पूरी तरह खादीकी ही पोशाक नहीं पहनते और मैंने देखा है कि बहुत-से लोग टोपीके अलावा और सब कुछ खादीका ही पहनते हैं।[१]...

पत्र-लेखककी बातें बहुत सही हैं। जैसे लेखाचित्र देनेकी बात पत्र-लेखकने कही है, वैसा लेखाचित्र तैयार करनेकी व्यवस्था की जा रही है। इस बीच श्री राजगोपालाचारीने तामिलनाडके सम्बन्धमें जो आँकड़े दिये हैं वे खादीकी प्रगतिकी स्पष्ट साक्षी देते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-४-१९२६

३०५. क्या भारत मद्यनिषेध चाहता है?

भारतमें पूर्ण मद्य निषेधके विरोधियोंने पंजाबके वित्त आयुक्त श्री किंगके भाषणको आवश्यकतासे अधिक महत्त्व दे दिया है। खबर है कि श्री किंगने कहा कि पंजाबका स्थानीय स्वैच्छिक शराबबन्दी अधिनियम (लोकल ऑप्शन ऐक्ट), जिसको पास हुए साल-भरसे ऊपर हो गया है, पूरी तरह विफल रहा है। आयुक्त महोदयने अपने कथनके समर्थनमें निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये हैं:

कुल २०० नगरपालिकाओं, स्थानिक निकायों आदिमें से केवल १९ ने इस अधिनियमके अधीन प्राप्त होनेवाले अधिकारोंकी माँग की है। इन १९ में से केवल ६ ने अधिकार माँगनेसे आगेकी कार्रवाई की है और इन ६ में भी जो जनमत-संग्रह किया गया, उसमें भाग लेनेवालोंकी संख्या नगण्य थी। उदाहरणके लिए, रावलपिंडी के ७००० मतदाताओंमें से केवल ६ ने मतदान किया। लुधियानामें पहले जनमत-संग्रहके

३०-१८
 
  1. अंशतः उद्धृत।