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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कताईसे अधिक लाभदायक धन्धा न मिलनेतक यदि वह अपने खाली समयमें (जो उसके पास काफी होता है) सूत काते तो वह अपनी अवस्थामें और भी सुधार कर सकता है। लेकिन जबतक शिक्षित वर्गके लोग कताईका फैशन नहीं चलाते और उसे इस बातका विश्वास नहीं दिला देते कि चरखा कुछ दिनोंका तमाशा-मात्र नहीं है तबतक वह यह काम नहीं करेगा।

लेकिन बाबू भगवानदास आगे कहते हैं:

अगर कानका कार्यक्रम इतना आसान है, इतना वांछनीय और इतना कारगर है तो आखिरकार कुछ कारण तो होगा जिससे तीस करोड़ लोग इसे तुरन्त अपना नहीं लेते। क्या कारण है कि कांग्रेसके सदस्योंकी संख्या आज सिर्फ नौ हजारसे कुछ अधिक रह गई है?

निश्चय ही उन्हें ऐसे बहुत-से "सम्भव, वांछनीय और कारगर" कामोंकी जानकारी अवश्य होगी, जो सिर्फ इसलिए नहीं किये जा रहे हैं कि इच्छा और प्रयत्नका अभाव है। सबका शिक्षित होना "सम्भव, वांछनीय और कारगर" चीज है, फिर भी लोग इसमें तुरन्त प्रवृत्त नहीं हो जाते। लोगोंको शिक्षा प्राप्त करनेकी आवश्यकता समझानेके लिए प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओंकी एक पूरी फौजकी-फौज लगा देनी पड़ेगी। सफाई सम्बन्धी सावधानी बरतना "सम्भव, वांछनीय और कारगर है।" लेकिन, क्या कारण है कि यह बात जैसे ही ग्रामवासियोंके ध्यानमें लाई जाती है, वे तुरन्त इसपर अमल शुरू नहीं कर देते? उत्तर बहुत सीधा-सादा है। प्रगतिकी रफ्तार बहुत धीमी है, वह रेंगकर चलती है। वह जितनी अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, उतने ही अधिक प्रयत्न, संगठन, समय और खर्चकी अपेक्षा रखती है। वैसे तो कताईने खूब प्रगति की है, लेकिन अगर यह और ज्यादा तेजीसे प्रगति नहीं कर रही है तो उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सुसंस्कृत वर्गोंके लोग, जो जनताके स्वाभाविक नेता हैं, राष्ट्रीय पुनर्निर्माणकी किसी भी योजनामें चरखेके सर्वोपरि स्थानको या तो समझना नहीं चाहते या समझनेमें असमर्थ हैं। लगता है, इसकी सादगीसे ही वे हैरान हैं।

[ अंग्रेजीसें ]
यंग इंडिया, ८-४-१९२६