पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/३०५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६९
शंका-समाधान

  जो कथा नहीं बैठती उसका हमें त्याग करना चाहिए। कथाको सही साबित करनेके लिए नीतिका त्याग नहीं किया जा सकता।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९८९८) की माइक्रोफिल्मसे।

३०२. पत्र: एक विद्यार्थीको

साबरमती आश्रम
बुधवार, ७ अप्रैल, १९२६

भाई...[१]

तुम्हारा पत्र मिला। उससे मैं यह समझा हूँ कि तुमने अपनी स्त्रीके साथ बिलकुल भी भोग नहीं किया। तुम [ उसके साथ ] एकान्तमें कभी नहीं रहे। फिर भी वह सगर्भा है, ऐसी तुम्हें आशंका है और इससे तुम चिन्तामें पड़ गये हो। लेकिन इसमें मैं तो चिन्ताका कोई कारण नहीं देखता। यदि तुम्हारी स्त्री गर्भवती है तो तुम उसका त्याग कर सकते हो और वह भी उसका तिरस्कार करके नहीं बल्कि दयाभावसे। जिस पुरुषके साथ उसने संग किया अगर उसके साथ वह रह सकती है तो रहे और यदि वह पुरुष विवाहित हो तो वह अपने माँ-बापके यहाँ रहे। तुम्हें उसके माँ-बापको विनयके साथ किन्तु दृढ़तापूर्वक यह खबर दे देनी चाहिए।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८५३अ) की माइक्रोफिल्मसे।

३०३. शंका-समाधान

आप कहते हैं, स्वराज्य या तो खूनी संघर्ष के पुराने और बुरे रास्तेसे प्राप्त हो सकता है या फिर अपने गाँवोंकी झोंपड़ियोंमें, हम जितना कात सकें, उतना सूत कातनेके महात्माजी द्वारा सुझाये नये और अच्छे रास्तेसे मिल सकता है। यह तो लोगोंपर एक खूबसूरत फिकरेसे भ्रम पैदा करनेका ही एक नमूना है। आपने या दूसरे सम्बन्धित लोगोंने बराबर कातते जानेका यह कार्यक्रम (१) सम्भव है, (२) वांछनीय है, और (३) यह कारगर भी साबित होगा, इस सिद्धान्तको दोहराते जानके अलावा और क्या कदम उठाये हैं, जिससे लोगोंमें विश्वास पैदा हो? आजतक मेरे देखने में तो ऐसा कोई भी सीधा-सादा, समझमें आने लायक और पर्याप्त तर्क-सम्मत वक्तव्य नहीं आया है जिसमें ऐसी

  1. नाम छोड़ दिया गया है।