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२९६. पत्र: मणिलाल गांधीको

साबरमती आश्रम
७ अप्रैल, १९२६

चि॰ मणिलाल,

तुम्हारे दो पत्र मुझे सीधे मिले। तुम्हें पत्र लिखनेके बाद तुम्हारी ओरसे देशबन्धु स्मारकके लिए पैसे मिले थे। तुम्हें उसकी रसीद नहीं मिली यह आश्चर्यकी बात है। बहुत करके मैं रसीद प्राप्त करके इसके साथ भेज दूँगा। इससे मालूम होगा कि कितने पैसे मिले हैं।

श्री एन्ड्रयूजको अब यहाँ आ जाना चाहिए। लेकिन, उनके रवाना होनेका तार अभी मैंने देखा नहीं है। उनकी मेहनतकी तो कोई सीमा नहीं है। तुम्हें एक पत्र मैंने चि॰ रामदासकी मार्फत भी भेजा है। मैं उसके उत्तरकी राह देखूँगा। हो सके तो तार भेजना। शान्तिसे कहना कि पत्र लिखे। उसे मैंने एक पत्र लिखा है; उसका उसने उत्तर नहीं दिया। क्या किसी भी तरह उसका दमा मिट नहीं सकता है? सब नौकरोंने तुमसे अधिक वेतनकी माँग की थी, उसका क्या हुआ? रामदास थोड़े दिन रहकर अभी-अभी अमरेली गया है। देवदास देवलालीमें है। वह मथुरादासकी देखभालमें लगा हुआ है, लेकिन स्वयं कुछ बीमार पड़ गया है। चिन्ताका कोई कारण नहीं है। गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४२८) की माइक्रोफिल्मसे।

२९७. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

साबरमती आश्रम
बुधवार, ७ अप्रैल, १९२६

चि॰ मथुरादास,

तुम्हारा पत्र मिला। देवदासके पत्रमें प्यारेलाल अथवा सुरेन्द्रको भेजने की खास माँग की गई है। इसलिए आज प्यारेलालको भेज रहा हूँ। मेरी अपनी सलाह तो यह है कि वहाँ राजगोपालाचारीके आनेके बाद देवदास यहाँ आ जाये और फिलहाल तुम्हारे पास प्यारेलाल रहे। तुम्हें प्यारेलाल अनुकूल आयेगा अथवा नहीं, यह तो तुम ही बता सकते हो। पंचगनीके बारेमें सर प्रभाशंकरको पत्र लिखा है। उसका उत्तर आज-कलमें आना चाहिए।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४२९) की माइक्रोफिल्मसे।