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२९२. पत्र: एक मित्रको

साबरमती आश्रम
७ अप्रैल, १९२६



प्रिय मित्र,

आपका पत्र पाकर बड़ी खुशी हुई। इस महीनेकी २१ तारीखतक में साबरमती आश्रममें हूँ। वैसे तो सोमवारके अलावा और सब दिन शामके ४ बजे मुझसे मुलाकात हो सकती है, लेकिन, आप चाहें तो इन दिनोंमें से किसी भी दिन कोई और समय भी मुलाकातके लिए दे सकता हूँ। २२ के बाद मुझसे मसूरीमें मिल सकते हैं। इसलिए, आप जैसा ठीक समझें, खुद ही तय कर लें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४३३) की माइक्रोफिल्मसे।

२९३. पत्र: अमृतलाल नानावटी और अन्य लोगोंको

साबरमती आश्रम बु
धवार, ७ अप्रैल, १९२६

भाईश्री ५ अमृतलाल और अन्य भाई,

आपका पत्र मिला। मैं जैसे किसी भी कार्यमें अपनी ओरसे नहीं पड़ता, इसी तरह चाहे जिस कार्यमें पड़ना भी मैं उचित नहीं समझता। पालीताणाके बारेमें मैं जानता हूँ कि संघके नायक कुछ आन्दोलन कर रहे हैं। किन्तु मैं उसमें कैसे बीचमें पड़ सकता हूँ? मेरी राय में आपको भी जो करना हो सो इन नायकोंकी मार्फत ही करना चाहिए। यह कार्य ऐसा नहीं है कि जो श्रावक चाहे वही अपनी इच्छासे सत्याग्रह शुरू कर दे। आपको ऐसा लगे कि सत्याग्रहका समय आ गया है। तो भी आपको यह काम संघकी मार्फत ही करना चाहिए। कुछ समय पहले उसके बारेमें सलाहके लिए मेरे पास कुछ सज्जन आये थे; उन्हें मैंने यह सब बात समझाई थी। गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०८७१) की माइक्रोफिल्मसे।