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२८८. पत्र: वामन लक्ष्मण फड़केको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, ६ अप्रैल, १९२६



भाई मामा,

तुम्हारा पत्र मिला। यदि आसानीसे आ सकते हो तो भले आ जाना। १० तारीखतक तो नानाभाई भी सिंहगढ़से वापस आ जायेंगे। नानाभाईके साथ हुई बातचीतके सम्बन्धमें मैंने जो पत्र लिखा है, उसे साथ लेते आना। स्वामी यहीं है। मुझे जब मिलेगा तब छगनके बारेमें पूछूँगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र ( जी॰ एन॰ ३८१३) की फोटो-नकलसे।

२८९. पत्र: लल्लू मोरारको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, ६ अप्रैल, १९२६

भाई लल्लूभाई मोरार,

तुम्हारा पत्र मिला। वहाँके अनैक्यकी बात सुनकर दुःख होता है। तुममें से यदि एक व्यक्ति भी नम्र बनकर सत्यके मार्गपर चलते हुए अन्य लोगोंकी सेवामें रत हो जाये तो अन्य लोग भी अवश्यमेव उसके आसपास इकट्ठे हो जायेंगे। यहाँसे अभी तुरन्त किसीको भेजा जा सके, ऐसी स्थिति नहीं है; लेकिन तुम्हें यदि मुझसे कुछ पूछना हो तो पूछना। तुम 'नवजीवन' मँगाते हो न? न मँगवाते हो तो उसके ग्राहक बनो, यह अभीष्ट है। इसका वार्षिक चन्दा १० शिलिंग है। गुजराती प्रति ( एस॰ एन॰ १९४२७ ) की माइक्रोफिल्म से।