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२८६. पत्र: राजेन्द्र प्रसादको

साबरमती आश्रम
६ अप्रैल, १९२६

प्रिय राजेन्द्र बाबू,

साथके पत्रमें अस्पृश्यतासे सम्बन्धित जो अंश चिह्नांकित है, उसे पढ़कर मुझे बताइए कि सचाई क्या है।

हृदयसे आपका,

संलग्न: १. श्रीयुत राखालचन्द्र मैती, सदाकत आश्रम, डाकघर— दीघाघाट पटनाका पत्र

बाबू राजेन्द्र प्रसाद
मुरादपुर, पटना

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४२५) की माइक्रोफिल्मसे।

२८७. पत्र: राखालचन्द्र मैतीको

साबरमती आश्रम
६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। सदाकत आश्रममें भोजन-व्यवस्थाके वर्गीकरणके बारेमें आपने जो-कुछ लिखा है, उससे मुझे आश्चर्य हुआ है। आपका पत्र मैं राजेन्द्र बाबूको भेज रहा हूँ। उन्हें इसका जवाब देनेको लिखा है।

मैं आपकी इस बातसे सहमत हूँ कि प्रार्थना छोटी और समझमें आने लायक होनी चाहिए और वह सीधे हृदयसे निकलनी चाहिए। प्रार्थना सर्वशक्तिमान प्रभुसे करनी चाहिए और कॉलेजों तथा ऐसी किसी भी संस्थामें प्रार्थना की जाये तो वह ऐसी हो जिसमें सब शरीक हो सकें।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत राखालचन्द्र मैती


सदाकत आश्रम


डाकघर-दीघाघाट, पटना

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४२६) की माइक्रोफिल्मसे।