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पत्र:पुरी जिला बोर्डके उपाध्यक्षको

चूँकि यूरोपीय संघ अध्यक्ष तथा कुछ यूरोपीय व्यापारियोंके साथ मेरी इस विषयपर बातचीत हुई है और उन सबने कहा है कि कोई बात नहीं कि हम अपने कर्मचारियोंको खादी पहननेकी अनुमति न दें, इसलिए पत्र-लेखक द्वारा लिखी गई बातपर मुझे सहसा विश्वास नहीं हुआ। यदि आप मुझे यह बतानेकी कृपा करें कि पत्र-लेखक द्वारा भेजी गई जानकारीमें कोई सचाई है या नहीं तो मैं आभारी होऊँगा।

हृदयसे आपका,

मेसर्स ग्रीव्ज कॉटन व कम्पनी
फोर्ट, बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४२२) की माइक्रोफिल्मसे।

२८४. पत्र: पुरी जिला बोर्ड के उपाध्यक्षको

साबरमती आश्रम
६ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

अपने जिलेकी कन्या पाठशालाओं में कताईके बारेमें आपने अखिल भारतीय चरखा संघके अध्यक्षको जो पत्र लिखा है, वह मुझे दिलचस्प लगा। मैं आपसे कहना चाहूँगा कि अगर आप चरखेके स्थानपर तकलियाँ चलवायें तो आप कताईके लिए मंजूर रकममें से बहुत सारा पैसा बचा सकते हैं। चरखा संघने अब एक प्रामाणिक 'तकली शिक्षक' पुस्तक प्रकाशित की है, जिसे दो विशेषज्ञोंने लिखा है। इसमें तकली के बारेमें काफी विस्तृत जानकारी और सुझाव दिये गये हैं। चरखा संघका अनुभव यह है कि तकलीपर कातना स्कूलोंके लिए सबसे ज्यादा अच्छा और प्रभावकारी है, क्योंकि स्वाभाविक है कि स्कूलोंमें लड़के और लड़कियाँ थोड़ा-सा समय ही दे सकती हैं। इसलिए तकलीपर कातनेसे कुल उत्पादन चरखेपर कताई करनेसे कहीं ज्यादा होता है। उसका कारण सिर्फ यह है कि तकलियोंपर तो एक ही समयमें सैकड़ों बच्चे का सकते हैं और इसके लिए अतिरिक्त स्थानकी भी आवश्यकता नहीं होती। इसके अलावा, तकलीकी कीमत कुछ आने होगी, जबकि चरखेकी कीमत कुछ रुपये है तथा तकली खराब भी शायद ही कभी होती है। आपके लिए यह बेहतर होगा कि बोर्डने आपको तो जो अनुदान दिया है, उसमें से एक छोटी रकम खर्च करके अपने शिक्षकों को अहमदाबादके स्कूलोंमें होनेवाली तकली कताईको देखनेके लिए यहाँ भेजें।

हृदयसे आपका,

उपाध्यक्ष
जिला बोर्ड, पुरी

अंग्रेजी प्रति ( एस॰ एन॰ १९४२३ ) माइक्रोफिल्मसे।